शतरंज ओलम्पियाड में पुरुष और महिला दोनों वर्गों में भारत ने स्वर्ण पदक जीत लिए, तो यह कोई संयोग नहीं है। बल्कि यह विश्व शतरंज में भारत की बनी ताकत का इज़हार है।
शतरंज ओलम्पियाड में रविवार को भारत कामयाबी की जिस ऊंचाई पर पहुंचा, उचित ही उसकी तुलना 1983 में क्रिकेट विश्व कप में भारत के चैंपियन होने और ओलंपिक्स में 2008 में अभिनव बिंद्रा के भारत की ओर से पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने से की गई है। इस सफलता के साथ भारत की जो अन्य अभिनव उपलब्धियां याद आती हैं, उनमें 2021 में एथलेटिक्स में नीरज चोपड़ा का भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीतना और 2022 में बैडमिंटन में पहली भारत का थॉमस कप जीतना शामिल है। वैसे इस सफलता का जिस उपलब्धि से सीधा संबंध है, वह साल 2000 में विश्वनाथन आनंद का विश्व शतरंज विजेता होना है। सीधा संबंध इसलिए क्योंकि आनंद की कामयाबी तब से भारत के तमाम शतरंज खिलाड़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है। उसके बाद शतरंज की ऐसी संस्कृति बनी और भारत में शतरंज प्रतिभाओं का ऐसा विस्फोट हुआ कि 2010 आते-आते देश के 23 खिलाड़ी ग्रैंड मास्टर बन गए।
आज ये संख्या 80 से ज्यादा हो चुकी है। पांच खिलाड़ियों को ‘सुपर ग्रैंड मास्टर’ का दर्जा मिला हुआ है। 25 टॉप खिलाड़ियों की विश्व रैंकिंग में भारत के पांच खिलाड़ी हैं। भारत के डी गुकेश इस वर्ष विश्व शतरंज चैंपियनशिप के लिए चैलेंजर का दर्जा हासिल कर चुके हैं। अगले नवंबर में वे मौजूदा चैंपियन चीनी खिलाड़ी के साथ खिताब के लिए मुकाबला करेंगे। कहने का तात्पर्य यह कि शतरंज ओलम्पियाड में पुरुष और महिला दोनों वर्गों में भारत ने स्वर्ण पदक जीत लिए, तो यह कोई संयोग नहीं है। बल्कि यह विश्व शतरंज में भारत की बनी ताकत का इज़हार है। वैसे भी ऐसी सफलताओं के लिए यह अनिवार्य होता है कि संबंधित देश के पास खिलाड़ियों की लंबी कतार हो। देश के अंदर प्रतिस्पर्धा का ऊंचा स्तर खिलाड़ियों में वह आत्म-विश्वास और धार प्रदान करता है, जिससे विश्व स्तर पर वे अनुपम उपलब्धि हासिल कर सकें। ये बात भी पूरे भरोसे के साथ कही जा सकती है कि ताजा सफलता यहीं तक सीमित नहीं रहने वाली है। बल्कि आने वाले वर्षों में विश्व शतरंज में भारत का दबदबा एक आम कहानी बन सकती है।