मध्य प्रदेश कांग्रेस नेताओं की समझ में आईपीएल में टीम रखना राज्य के लिए प्रतिष्ठा की बात है। संभवतः इसलिए पार्टी ने प्रतिष्ठा की भावना से प्रेरित मतदाताओं को लुभाने का दांव फेंका है।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के घोषणापत्र में एक ऐसा वादा है, जिसने सहज ही ध्यान खींचा है। पार्टी ने कहा है कि वह सत्ता में आई, तो राज्य सरकार इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में अपनी टीम की भागीदारी सुनिश्चित करेगी। इस टीम का स्वामित्व राज्य सरकार के हाथ में होगा। विश्व क्रिकेट का अब सबसे बड़ा ब्रांड बन चुके आईपीएल में अभी तक जो टीमें हैं, वे सभी प्राइवेट स्वामित्व वाली हैं। वैसे भी सरकार अपनी टीम बनाए, यह एक नई बात है। अब तक खेल संस्थाओं पर सरकारी या राजनीतिक प्रभाव की चर्चा रही है। एक आंशिक अपवाद ओडीशा जरूर है, जहां खेल को प्रोत्साहन देने के लिए 2013 में सार्वजनिक क्षेत्र में ओडीशा स्पोर्ट्स डेवलपमेंट एंड प्रोमोशन कंपनी बनाई गई थी, जिसे शेयर बाजार में भी लिस्ट कराया गया। ओडीशा आज अगर हॉकी की दुनिया का प्रमुख केंद्र बन गया है, तो ओडीशा सरकार की इस पहल की उसमें सर्व प्रमुख भूमिका है। इस पहल का लाभ भारतीय हॉकी को मिला है। इसके अलावा इस कंपनी के स्वामित्व वाली एक टीम पारंपरिक खेल खो खो लीग में भाग लेती है।
लेकिन भारत में क्रिकेट को ऐसे किसी सरकारी प्रोत्साहन की जरूरत है, यह बात समझ से परे है। खासकर घरेलू लीग क्रिकेट का भारत में क्रेज बना गया है, जिसमें अकूत धन लगा हुआ है। फिर भी मध्य प्रदेश कांग्रेस ने ऐसा चुनावी वादा किया है, तो उसका एक ही कारण समझ में आता है। प्रदेश कांग्रेस नेताओं की समझ में आईपीएल में टीम रखना राज्य के लिए प्रतिष्ठा की बात है। इसलिए पार्टी ने प्रतिष्ठा की भावना से प्रेरित मतदाताओं को लुभाने का दांव फेंका है। दरअसल, इस बार प्रदेश कांग्रेस के घोषणापत्र में वादों की सूची इतनी लंबी है कि उसे याद रखना पार्टी नेताओं के लिए भी आसान नहीं रहेगा। जाहिर है, उनमें से कई वादे भुला दिए जाएंगे। आईपीएल का वादा भी संभवतः उनमें शामिल होगा, क्योंकि आईपीएल में कौन-सी टीम शामिल होगी, यह बाजार के तर्क से तय होता रहा है। क्या बेहतर नहीं होता कि कांग्रेस पहले इस तर्क पर राज्य को खरा उतारने पर ध्यान देती!