हाल पहले से बुरा है या अब बिगड़ा है, यह फिलहाल अप्रसांगिक सवाल है। आज की हकीकत यह है कि हम सबके आसपास- भौतिक और मानव दोनों तरह के- इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्थितियां जर्जर होती जा रही हैं। बुनियाद ही जर्जर दिखने लगी है।
बारिश के कारण तीन दिन में तीन हवाई अड्डों के छज्जे गिरे। एक अन्य जगह पानी टपकता दिखा। नई दिल्ली में तो इस हादसे में एक मौत भी हुई। राष्ट्रीय राजधानी में बारिश शुरुआती और साधारण थी। फिर भी वीआईपी इलाकों समेत लगभग पूरे शहर में तालाब जैसा नजारा बन गया। देश के सबसे बड़े अस्पताल- एम्स- में इस तरह पानी बहा कि सर्जरी रोकनी पड़ी। गुजरे समय की बात छोड़ भी दें, तो सिर्फ इसी सीज़न में ऐसी स्थिति के कारण अनेक शहरों में जन-जीवन अस्त-व्यस्त हुआ है। उधर वंदे भारत जैसी वीआईपी ट्रेन में छत टपकने से जल प्रवाह के वीडियो बहुचर्चित हुए हैं। आम ट्रेनों के अंदर भीड़ और बढ़ती दुर्घटनाओं की बात तो दीगर है। बिहार में नौ दिन के अंदर पांच पुल ढह गए। नई बनी सड़कों में दरार की खबरें तो अब अखबारों में पहले पेज पर बड़ी सुर्खी भी नहीं बनतीं। लगे हाथ देश में प्राइमरी शिक्षा और प्राथमिक स्वास्थ्य के हाल की चर्चा शुरू कर दें, तो फिर बात संभाले नहीं संभलेगी! यह हाल पहले से बुरा है या अब बिगड़ा है, यह भी फिलहाल अप्रसांगिक सवाल है।
आज की हकीकत यह है कि हम सबके आसपास- भौतिक और मानव दोनों तरह के- इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्थितियां जर्जर होती जा रही हैं। इसी बीच अगर राष्ट्रपति के अभिभाषण में यह सुनने को मिलता है कि भारत तीव्र विकास की राह पर है और वैश्विक संघर्षों के बीच विश्व-गुरु की भूमिका निभा रहा है, तो उससे मन की व्यग्रता और बढ़ती ही है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी कहानियों में देश का एक बड़ा जनमत यकीन करता है! देश महाशक्ति बन रहा है, बल्कि अब तो सारी दुनिया को भारत ही चला रहा है- जैसी बातें जब-तब, जहां-तहां सुनने को मिल जाती हैं। बहरहाल, देश की चिंता छोड़िए, जिन लोगों को अपनी जिंदगी की मूलभूत सहूलियतों की भी चिंता है, उनके लिए उचित होगा कि वे नज़र चांद से हटा कर अपने आसपास के हाल पर डालें। तब उन्हें अहसास होगा कि हमें एक बार शुरुआत बुनियाद से करने की आवश्यकता है। कमजोर बुनियाद के साथ कोई समाज महाशक्ति नहीं बनता!