Donald Trump: अमेरिका के नए राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप चीन के प्रति नरम रुख अपनाते हैं, तो भारत-अमेरिका संबंध प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे।
टैरिफ बढ़ाने की राह पर ट्रंप बढ़ते हैं, तो भारत के कृषि क्षेत्र के लिए नई चुनौतियां पैदा होंगी।
डॉनल्ड ट्रंप की ताजपोशी के साथ अमेरिका की विदेश नीति को लेकर दुनिया भर में अनिश्चय और अंदेशे गहराए हैं। ऐसा माहौल ज्यादातर अमेरिका के सहयोगी देशों में बना है।
क्योंकि आरंभिक तौर पर ट्रंप ने सहयोगी और पड़ोसी देशों के खिलाफ ही मोर्चा खोला है। जबकि जहां उनसे सख्त रुख की अपेक्षा रही है, वहां उन्होंने अप्रत्याशित नजरिया अपनाया है।
मसलन, ट्रंप इजराइल का घोर समर्थक माने जाते हैं, मगर ह्वाइट हाउस में प्रवेश से पहले ही उनके दबाव में इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को हमास के साथ युद्धविराम करने पर मजबूर होना पड़ा।
उधर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को ट्रंप ने खुद फोन किया। बातचीत के बाद सोशल मीडिया पर उन्होंने कहा कि शी के साथ मिल कर वे दुनिया में शांति लाने के लिए काम करेंगे।
उधर कनाडा जैसे खास दोस्त को उन्होंने आहत और मेक्सिको जैसे निकट पड़ोसी को आशंकित कर रखा है। नाटो के सदस्य डेनमार्क के इलाके ग्रीनलैंड को हड़पने का इरादा उन्होंने जताया है।
यूरोपीय सहयोगियों को धमकाया है कि उन्होंने अपने जीडीपी का पांच प्रतिशत हिस्सा सेना पर खर्च ना किया, तो अमेरिका उनकी सुरक्षा नहीं करेगा।
और भारत को चेताया है कि उसने अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क नहीं घटाया, तो उसी अनुपात में भारतीय उत्पादों पर वे भी कस्टम ड्यूटी लगाएंगे।
aalso read: BCCI का नया फरमान!13 साल बाद रणजी ट्रॉफी में विराट कोहली वापसी
गौरतलब है कि चीन से अमेरिका की तीखी होती प्रतिस्पर्धा का अमेरिकी रणनीति में भारत का महत्त्व बढ़ने से सीधा संबंध है।
ट्रंप चीन के प्रति नरम रुख अपनाते हैं, तो उससे भारत-अमेरिका संबंध प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। टैरिफ बढ़ाने की राह पर ट्रंप बढ़ते हैं, तो भारत के कृषि क्षेत्र के लिए नई चुनौतियां पैदा होंगी।
ट्रंप प्रशासन भारत पर अमेरिकी कपास, दुग्ध उत्पादों, इथेनॉल, ताजा फल, ड्राइ फ्रूट, वन उत्पादों, खाद्य एवं पेय पदार्थों, और दालों के लिए बाजार खोलने के लिए दबाव डाल सकता है।
इन चर्चाओं से भारतीय नीतिकारों का आशंकित होना लाजिमी है। फिलहाल, उम्मीद की गुंजाइश सिर्फ यह है कि ट्रंप अस्थिर एवं अनिश्चित दिमाग के व्यक्ति हैं। इसलिए मुमकिन है कि कुछ महीनों के बाद उनका वो रूप उभरे, जो भारत के अधिक अनुकूल हो।