साल- दो साल पहले तक ई-कॉमर्स फेस्टिवल्स में ऑर्डर्स की कतार लग जाती थी। लेकिन इस बार इलेक्ट्रॉनिक सामानों से लेकर लाइफस्टाइल उत्पादों तक की वैसी मांग नहीं देखी गई। आम बाजारों में तो यह हाल पहले से है।
खबर है कि बीते सप्ताहांत ई-कॉमर्स फेस्टिवल कमजोर रहा। अमेजन और कुछ अन्य प्लैटफॉर्म्स पर शुक्रवार से रविवार तक 40 फीसदी तक छूट के साथ उपभोक्ता सामग्रियां बेची गईं। बताया जाता है कि पहले दिन तो ठीक-ठाक ऑर्डर मिले, लेकिन बाद के दो दिन इनमें भारी गिरावट आ गई। जबकि साल- दो साल पहले तक ऐसे फेस्टिवल्स में ऑर्डर्स की कतार लग जाती थी। लेकिन इस बार इलेक्ट्रॉनिक सामानों से लेकर लाइफस्टाइल उत्पादों तक की वैसी मांग नहीं देखी गई। बाजारों में तो यह हाल पहले से है। इस पर कहा जाता था कि लोगों का तौर-तरीका बदल गया है।
अब ऑनलाइन खरीदारी का जमाना है। मगर ऐसा लगता है कि आमदनी वृद्धि गतिरुद्ध होने और इसके परिणामस्वरूप बाजार में मांग कमजोर होने से बने हालात की चपेट में ऑनलाइन ई-कॉमर्स भी आने लगा है। हकीकत यह है कि सरकार की आर्थिक प्राथमिकताओं के कारण भारत में उपभोक्ता बाजार का फैलना काफी पहले रुक चुका है। आबादी के एक छोटे हिस्से की आमदनी जरूर तेजी से बढ़ी है, लेकिन बहुसंख्यक जनता का जीवन स्तर रोजगार के अवसरों की कमी और महंगाई की मार की वजह से गिरता चला गया है। इसका असर बाजार पर साफ दिखता है। इसका असर उद्योग जगत पर भी दिखता है, जहां तमाम सरकारी प्रोत्साहनों के बावजूद निजी निवेश में बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है। जिस छोटे तबके की आमदनी बढ़ी है, वही ई-कॉमर्स में चमक का आधार है। मगर वह तबका भी कितनी जल्दी-जल्दी अपने इलेक्ट्रॉनिक सामान या अन्य टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं को बदलेगा?
तो इस बार बाजार के असल ट्रेंड का असर ई-कॉमर्स फेस्टिवल पर भी पड़ा है। चूंकि आज चलन खबरों को आशाजनक मोड़ देकर खत्म करने का है, तो संबंधित खबरों में संभावना जताई गई है कि अक्टूबर में जब दशहरा करीब आएगा और उसके बाद दिवाली का माहौल बनेगा, तो उपभोक्ता खुले हाथ से खर्च करेंगे। इस वर्ष उपभोक्ता खर्च में 20 फीसदी बढ़ोतरी का अनुमान है। इससे रिटेल कारोबार चमकेगा। इस पर यही कहा जा सकता है कि स्थितियां जब प्रतिकूल हों, तब ऐसी उम्मीदों और अनुमानों का सहारा ही बचता है।