साल 2022-23 में कोरोना काल से पहले के आखिर वित्त वर्ष की तुलना में एक करोड़ से ज्यादा सालाना आमदनी बताने वाले लोगों की संख्या 49.4 प्रतिशत बढ़ी। जबकि इसी अवधि में पांच लाख तक आमदनी वाले लोगों की संख्या सिर्फ 1.4 प्रतिशत बढ़ी।
गुजरे वित्त वर्ष के लिए फाइल किए गए इनकम टैक्स रिटर्न के आंकड़ों ने एक बार फिर से भारत में आमदनी की बढ़ रही गैर-बराबरी की कहानी बयान की है। हालांकि अभी तक सरकार ने 30 जून तक फाइल हुए रिटर्न्स के आंकड़े ही जारी किए हैं, इसके बावजूद कहा जा सकता है कि उससे जो ट्रेंड दिखा है, उसमें अंतिम आंकड़ों से भी ज्यादा बदलाव होने की संभावना नहीं है। यह कहने का आधार बड़ी कंपनियों के मुनाफे और डिविडेंड वितरण का रुझान भी है। इन सबकी दिशा यही बताती है कि अर्थव्यवस्था का अंग्रेजी के अक्षर के जैसा स्वरूप लगातार मजबूत होता जा रहा है। मतलब यह कि ऊपर के हिस्से पर मौजूद छोटी-सी आबादी की आय और धन दोनों में तेजी से वृद्धि हो रही है, जबकि निचली डंडी पर मौजूद लोग गतिरुद्ध अवस्था में हैं। आय कर रिटर्न के ताजा आंकड़ों ने बताया है कि 2022-23 में कोरोना काल से पहले के आखिर वित्त वर्ष की तुलना में एक करोड़ से ज्यादा सालाना आमदनी बताने वाले लोगों की संख्या में 49.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। जबकि इसी अवधि में पांच लाख तक आमदनी वाले लोगों की संख्या सिर्फ 1.4 प्रतिशत बढ़ी।
चूंकि आईटी रिटर्न्स से उन लोगों के हाल के बारे में मालूम नहीं होता, जिन्हें इन्हें फाइल करने की औपचारिकता पूरी करने की मजबूरी नहीं है। अभी अंतिम आंकड़े सामने नहीं हैं, लेकिन पिछले वित्त वर्षों के आधार पर अनुमान लगाएं, तो 140 करोड़ की आबादी में रिटर्न फाइल करने वाले लोगों की संख्या अधिकतम साढ़े आठ से नौ करोड़ से ज्यादा नहीं होगी। बाकी लोगों की वास्तविक आय घटने और इसके कारण उनके बीच मांग और उपभोग की गिरावट पिछले कई वर्षों से एक स्थायी कहानी बनी हुई है। दूसरी तरफ एक करोड़ रुपये से अधिक की सालाना आय वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, तो इसका सीधा कारण कुछ खास क्षेत्रों की कंपनियों के शेयर भाव में भारी इजाफा और उसके आधार पर शेयरधारकों को दिया गया ज्यादा डिविडेंड है। वैसे यह वितरण भी खासा असमान रहा है। परंतु यह बड़ा मसला आम चर्चा में कहीं नहीं है।