दूसरी तिमाही की तुलना में अक्टूबर-दिसंबर के बीच निजी निवेश में 1.4 फीसदी की गिरावट आई। पहली तिमाही में भारी गिरावट के बाद दूसरी तिमाही में सकारात्मक संकेत दिखे थे। मगर तीसरी तिमाही ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
निजी निवेश में गिरावट का सिलसिला इस वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में भी जारी रहा। दूसरी तिमाही की तुलना में अक्टूबर-दिसंबर के बीच इसमें 1.4 फीसदी की गिरावट आई। ताजा खबर के मुताबिक पहली तिमाही में भारी गिरावट के बाद दूसरी तिमाही में कुछ सकारात्मक संकेत दिखे थे। मगर तीसरी तिमाही ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। तो फिर जाहिर हुआ है कि अर्थव्यवस्था में गति लाने की केंद्र की कोशिशें कारगर नहीं हो रही हैं। नए और जारी उद्यमों में निवेश बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के मकसद से सरकार ने अपना पूंजीगत निवेश (कैपेक्स) बढ़ाया है, तो दूसरी तरफ उसने प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) जैसी योजना पर भारी खर्च किया है।
इस वर्ष के लिए केंद्र ने कैपेक्स का बजट 11 लाख 11 हजार करोड़ रुपये रखा था। सोच यह है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर में सरकारी निवेश से रोजगार के अवसर बनेंगे, दूसरी तरफ इस क्रम में सीमेंट, स्टील आदि जैसी अन्य वस्तुओं की मांग पैदा होगी। उससे वहां भी रोजगार पैदा होगा। उन सबका प्रभाव सकल अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। नतीजतन, कुल निजी निवेश बढ़ेगा। जहां उच्च तकनीक एवं बड़े निवेश की आवश्यकता है, वहां पीएलआई स्कीम से देशी और विदेशी कंपनियां उद्यम लगाने के लिए प्रोत्साहित होंगी। मगर जो आंकड़े सामने हैं, उनसे यह रणनीति कामयाब होती नहीं दिखती। इसकी बड़ी वजह उपभोक्ता बाजार में मंदी है। पर्याप्त मांग पैदा करने के लिहाज से कैपेक्स और पीएलआई का रास्ता काफी साबित नहीं हुआ है।
यह बात ऊंचे पदों पर बैठे सरकारी अधिकारी कह चुके हैं कि बड़ा मुनाफा कमा रही कंपनियों ने कर्मचारियों की तनख्वाह में उचित बढ़ोतरी नहीं की है, जबकि क्वालिटी रोजगार पैदा होने की रफ्तार बेहद धीमी बनी हुई है। परिणाम यह है कि आम उपभोग नहीं बढ़ रहा है और बाजार में मांग मद्धम बनी हुई है। ऐसे में कंपनियां अपनी उत्पादन क्षमता का पूरा उपयोग नहीं कर पा रही हैं। तो आखिर वे किसलिए नया निवेश करेंगी? क्या दस दिन बाद पेश होने वाले केंद्रीय बजट में इस चिंताजनक तथ्य पर ध्यान दिया जाएगा या पुराने चूकते रास्ते पर ही आगे बढ़ा जाएगा?