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बुनियाद बहुत कमजोर है

education ministry

education ministry: रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 57.2 प्रतिशत स्कूलों में चालू अवस्था वाले कंप्यूटर हैं। 52.9 फीसदी स्कूलों में इंटरनेट और 52.3 फीसदी स्कूलों में अन्य जरूरी तकनीकों की सुविधा है। यानी लगभग 45 प्रतिशत स्कूलों के छात्र आधुनिक तकनीक से वंचित हैं।

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यूडीआईएसई+ (यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस) की 2023-24 की रिपोर्ट से भारत में स्कूली शिक्षा के कमजोर बुनियाद की कहानी फिर सामने आई है।

पहला विवादास्पद आंकड़ा तो यही है कि पिछले वित्त वर्ष उसके पहले वाले साल की तुलना में स्कूलों में पढ़ रहे छात्रों की संख्या तकरीबन एक करोड़ घट गई। ऐसा कैसे हुआ?

सरकार के मुताबिक इसका कारण रिपोर्टिंग सिस्टम को सख्त बनाना है, जिससे डुप्लीकेट एंट्रीज खत्म हो गई हैँ। तो सामने आया कि 2021-22 में जहां स्कूलों में 26.52 करोड़ बच्चे थे, वहीं ये संख्या 2022-23 में 25.18 करोड़ और 2023-24 में 24.80 करोड़ हो गई।

छात्रों की संख्या घटने का सचमुच यही कारण है, या इसके पीछे व्यापक सामाजिक-आर्थिक या जनसंख्या संबंधी वजहें हैं, यह बड़े अध्ययन का विषय है।

रिपोर्ट प्री नर्सरी से 12वीं कक्षा तक

बहरहाल, जहां तक डिजिटल डिवाइड और बीच में ही पढ़ाई छोड़ने की जिस परिघटना पर रोशनी पड़ी है, वे निर्विवाद हैं। ये रिपोर्ट प्री नर्सरी से 12वीं कक्षा तक के बारे में है।

इसके मुताबिक सिर्फ 57.2 प्रतिशत स्कूलों में चालू अवस्था वाले कंप्यूटर हैं। 52.9 फीसदी स्कूलों में इंटरनेट और 52.3 फीसदी स्कूलों में अन्य जरूरी तकनीकों की सुविधा है।

स्पष्टतः देश के लगभग 45 प्रतिशत स्कूलों के छात्र आधुनिक सूचना तकनीक से वंचित हैं। ऊंची कक्षाओं में जाने के साथ छात्रों के ड्रॉप आउट के मामले बढ़ने का सिलसिला भी जारी है।

96.5 फीसदी बच्चे बुनियादी स्तर पर दाखिला लेते हैं, लेकिन उनमें से 5.5 प्रतिशत मिडल स्कूल में जाने के पहले पढ़ाई छोड़ देते हैं। उनमें से 10.9 प्रतिशत और बच्चे सेंकेंडरी स्तर पर जाते-जाते पढ़ाई छोड़ चुके होते हैं।

मेघालय जैसे राज्य में तो ये संख्या लगभग 21 फीसदी है। दरअसल, राज्यवार आंकड़ों को देखा जाए, तो विभिन्न राज्यों के बीच इस मामले में भारी फर्क दिखता है।

इसी तरह विभिन्न तबकों से आने वाले छात्रों में फर्क का अनुपात अलग-अलग है। ये जो फर्क यहां है, वह आगे जाकर बढ़ता चला जाता है।

यह क्षेत्रीय एवं आर्थिक-सामाजिक विषमता जारी रहने का बड़ा कारण बना हुआ है। असल में यह देश के पिछड़ेपन की अवस्था की भी एक प्रमुख वजह है।

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