Retail Inflation: हरी सब्जियों के दाम में मौसमी गिरावट के साथ ही आलू के दाम 68 प्रतिशत बढ़ जाएं, तो घरेलू बजट को कितना लाभ होगा! नवंबर के 9.53 प्रतिशत की तुलना में दिसंबर में खाद्य मुद्रास्फीति के 8.39 फीसदी ही रहने का यही गणित है।
मुद्रास्फीति में कुछ दशमलव अंकों की गिरावट से वित्तीय अखबारों की सुर्खियां जितनी चमक जाती हैं, वैसी राहत आम उपभोक्ता को महसूस नहीं होती।
हरी सब्जियों के दाम में मौसमी गिरावट के साथ ही आलू के दाम 68 प्रतिशत बढ़ जाएं, तो आखिर आम परिवार के घरेलू बजट को कितना लाभ होगा!
दिसंबर 2024 में खाद्य महंगाई बढ़ने की दर नवंबर के 9.53 प्रतिशत की तुलना में 8.39 फीसदी रहने का यही गणित है।(Retail Inflation)
गौरतलब यह है कि दिसंबर में भी खाद्यों की खरीद पर आम परिवारों को औसतन आठ प्रतिशत से अधिक खर्च करना पड़ा। बढ़ोतरी का ये सिलसिला कोरोना काल के बाद से जारी है।
also read: जाति गणना का मुद्दा क्या दिल्ली में चलेगा
इसलिए अस्वाभाविक नहीं है कि आम परिवारों की वास्तविक आय में सेंध लगती चली गई है, जिसका असर अब उपभोग और मांग के आंकड़ों में भी देखने को मिल रहा है।
डॉलर की तुलना में रुपये की रोज गिरती कीमत के साथ आयात महंगे हो रहे हैं। इसलिए महंगाई से राहत की आगे भी कोई संभावना नहीं है।
यानी घरों का बजट बिगड़ना जारी रहेगा। इसलिए उत्पादक अर्थव्यवस्था में कंपनियों का निजी निवेश बढ़ने की गुंजाइश बनती नहीं दिखती।(Retail Inflation)
और अब तो शेयर बाजार का जो हाल है, उससे वित्तीय अर्थव्यवस्था भी रोज झटके खा रही है।
ये स्थिति किसी समझदार और संवेदनशील सरकार की नींद उड़ा देने के लिए काफी है। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार इससे अप्रभावित दिखती है।
वह अपने बनाए नैरेटिव्स और गढ़े आंकड़ों के दड़बे से बाहर निकलने को तैयार नहीं है। संभवतः वह इन आंकड़ों से संतुष्ट है कि अभी भी देश में अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है और अरबपतियों की कुल संपत्ति बढ़ी है।
कैपिटलाइन के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2024 में भारत के अरबपतियों की संख्या 201 तक पहुंच गई। उनकी साझा संपत्ति एक ट्रिलियन डॉलर को पार कर गई है। मगर यह अर्थव्यवस्था की समृद्धि और खुशहाली का आंकड़ा नहीं है।
यह क्रोनिज्म की झलक है। असल में ये सफलता आम बदहाली की कीमत पर हासिल की गई है। सरकार जितनी जल्दी इसे समझ ले बेहतर है, वरना भारत की संभावनाएं दीर्घकाल के लिए कुंद हो जाएंगी।