कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप इस हद तक चढ़ा कि पार्टी की जड़ें कमजोर करने में उसकी प्रमुख भूमिका रही। लेकिन तब जो दल और नेता कांग्रेस को निशाना बनाते थे, मौका मिलते ही वे सियासत में अपना वंश बढ़ाने में जुट गए।
वैसे चर्चा पहले से थी, लेकिन अब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने अपने बेटे उदयनिधि मारन को अपना औपचारिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। ठीक उसी तरह जैसे उनके पिता एम। करुणानिधि ने स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। करुणानिधि ने अपनी दूसरी संतानों को भी राजनीति में यथासंभव स्थापित करने में अपनी पूरी ऊर्जा लगाई। उदयनिधि को उप-मुख्यमंत्री बना दिया है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि इसे एक स्वाभाविक घटना के रूप में लिया गया है। यहां तक कि अखिलेश यादव सहित कुछ नेताओं ने उदयनिधि को बधाई भी दी है। अखिलेश खुद अपने पिता का उत्तराधिकार संभाल रहे हैं। यह भारतीय लोकतंत्र की अजीबोगरीब कहानी है। आज देश का नक्शा लेकर राज्य दर राज्य नज़र डालिए, तो ऐसे उत्तराधिकारी हर जगह नजर आएंगे! ऐसी घटनाएं इतनी आम हो गई हैं कि अब वैसा गुस्सा नजर नहीं आता, जिसकी कभी कांग्रेस को भारी कीमत चुकानी पड़ी थी।
जब इंदिरा गांधी ने 1970 के दशक में संजय गांधी को अपने उत्तराधिकारी के रूप में आगे बढ़ाना शुरू किया, तो समाज में उसको लेकर एक तरह की वितृष्णा देखी गई। एक विमान हादसे में संजय गांधी की मौत के बाद जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अपने बड़े बेटे राजीव गांधी को उनकी पायलट की नौकरी छुड़वा कर राजनीति में खींच लाईं, तो यह वितृष्णा और बढ़ी। जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाया गया, तो अनेक लोगों ने कहा था कि यह घटना भारतीय नागरिकों को ‘प्रजा’ बना देना है।
कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप इस हद तक चढ़ा कि पार्टी की जड़ें कमजोर करने में उसकी प्रमुख भूमिका रही। लेकिन तब जो दल और नेता कांग्रेस को निशाना बनाते थे, मौका मिलते ही वे सियासत में अपना वंश बढ़ाने में जुट गए। भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टियां ही शायद ऐसे दल बचे हैं, जहां सर्वोच्च स्तर पर वंश के आधार नेतृत्व तय नहीं हुआ है। हालांकि निचले स्तर पर वहां भी ऐसी मिसालें कम नहीं हैं। इस तरह चुनावी लोकतंत्र में सामंतवाद की वापसी हो गई है। अब चुनावों में सवाल सिर्फ यह रह गया है कि लोग किसके वंश को अपना नेतृत्व सौंपेंगे!