गुजरे दशकों में जिन कई क्षेत्रों में प्रगति होती नजर आई थी, वहां इसमें ठहराव आ गया है। इस बात की ही मिसाल स्कूलों में लड़कियों के लिए सेनेटरी पैड्स के वितरण के मुद्दे को गंभीरता से ना लिया जाना है।
देश में आम माहौल ऐसा है, जिसमें सामाजिक प्रगति और जन कल्याण के मुद्दे चर्चा से बाहर बने हुए हैं। इस कारण गुजरे दशकों में जिन कई क्षेत्रों में प्रगति होती नजर आई थी, वहां इसमें ठहराव आ गया है। इस बात की ही मिसाल स्कूलों में लड़कियों के लिए सेनेटरी पैड्स के वितरण के मुद्दे का चर्चा से बाहर हो जाना है। अब सुप्रीम कोर्ट ने उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया है, जिन्होंने स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए माहवारी स्वच्छता पर एक समान राष्ट्रीय नीति के गठन पर जवाब दाखिल नहीं किया है। सुप्रीम की चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यों की बेंच ने उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को चेतावनी दी है, जो स्कूली लड़कियों के लिए मासिक धर्म से जुड़े स्वच्छता के मुद्दे पर एक समान नीति बनाने के मामले में केंद्र से सहयोग नहीं कर रहे हैं। इन राज्यों ने इस बारे में केंद्र सरकार को अपना जवाब नहीं सौंपा है। अब कोर्ट ने ऐसे राज्यों को 31 अगस्त तक जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। सुनवाई के दौरान केंद्र ने कोर्ट को बताया कि अब तक केवल चार राज्यों ने अपना जवाब दिया है। ये राज्य हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश हैं।
मामला उस याचिका से जुड़ा है, जिसमें केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को छठी कक्षा से लेकर 12वीं तक हर छात्रा को मुफ्त सैनिटरी पैड और सभी आवासीय और गैर आवासीय शिक्षण संस्थानों में लड़कियों के लिए अलग शौचालयों की व्यवस्था करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है। इस वर्ष अप्रैल में इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र से सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त समेत सभी स्कूलों में छात्राओं के लिए माहवारी स्वच्छता के मानक तय का राष्ट्रीय मॉडल विकसित करने को कहा था। पिछले साल यूनिसेफ ने बताया था कि भारत में 71 फीसदी किशोरियों को माहवारी के बारे में जानकारी नहीं है। उन्हें पहली बार माहवारी होने पर इसका पता चलता है। और ऐसा होते ही उनमें से अनेक को स्कूल भेजना बंद कर दिया जाता है।