आईएमएफ में भारत के प्रतिनिधि ने अपनी राय जताई। उनकी राय को आईएमएफ की भविष्यवाणी बता कर पेश करने का अति-उत्साह भारत में इतना अधिक दिखाया गया कि अंततः आईएमएफ को सार्वजनिक तौर पर स्पष्टीकरण देना पड़ा है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) को सफाई देने पड़ी है। कहा है कि उसकी तरफ से भारत के आठ प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि दर हासिल करने संबंधी कोई अनुमान नहीं लगाया गया है। कहानी यह है कि आईएमएफ में भारत के प्रतिनिधि कृष्णमूर्ति सुब्रह्मण्यम ने कहीं यह कहा कि भारत की जीडीपी आठ प्रतिशत की ऊंची दर से बढ़ने का अनुमान है। भारत सरकार की छवि गढ़ने की परियोजना में दिन-रात जुटा भारत का मेनस्ट्रीम मीडिया उनकी इस टिप्पणी को ले उड़ा। सुब्रह्मण्यम की राय को उसने आईएमएफ की राय के रूप में प्रचारित कर दिया।
सुब्रह्मण्यम अपने मौजूदा पद से ठीक पहले नरेंद्र मोदी सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार थे। आईएमएफ में विभिन्न देशों के प्रतिनिधि वहां की सरकारों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में सुब्रह्मण्यम की टिप्पणी के संदर्भ को समझा जा सकता है। लेकिन उनकी राय को आईएमएफ की राय बता कर पेश करने का अति-उत्साह भारत में इतना अधिक दिखाया गया कि अंततः आईएमएफ को सार्वजनिक तौर पर स्पष्टीकरण देना पड़ा।
उसकी प्रवक्ता जूली कॉजैक ने कहा कि सुब्रह्मण्यम ने अपनी राय जताई, लेकिन यह आईएमएफ की राय नहीं है। उन्होंने ध्यान दिलाया कि आईएमएफ में भारत की जीडीपी वृद्धि दर के बारे में अपना जो पिछला अनुमान जताया था, उसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। उन्होंने कहा- ‘जनवरी में हमने जो अनुमान व्यक्त किया था, उसके मुताबिक मध्य अवधि में भारत की वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहेगी।
हम अपना अगला अनुमान दो हफ्तों के बाद जारी करने वाले हैं।’ यह घटना मिसाल है कि भारत में विकास का सुखबोध फैलाने के लिए आज किस तरह आंकड़ों को गढ़ा या पेश किया जा रहा है। आज की हकीकत यह है कि देश के सर्वोच्च नेतृत्व की तरफ से एक जुमला उछाला जाता है और फिर पूरा सरकारी तंत्र और मीडिया उसको लेकर जन धारणा बनाने की परियोजना में जुट जाता है। इस परियोजना के तहत नकारात्मक रुझानों और आंकड़ों को न सिर्फ दबा दिया जाता है, बल्कि उनके बीच ही कुछ सकारात्मक ढूंढने में सारी ऊर्जा लगा दी जाती है। फिलहाल ऐसी एक कोशिश फजीहत का कारण बनी है।