nayaindia Hate speech समझ अलग-अलग है!
Editorial

समझ अलग-अलग है!

ByNI Editorial,
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नफरती भाषण क्या है, इसको लेकर देश में एक समूह की जो समझ या परिभाषा है, आज की सत्ताधारी पार्टी की विचारधारा उससे सहमत नहीं है। बल्कि वैसे भाषण उसकी राजनीतिक रणनीति का धारदार हथियार बने हुए हैं।

जैसे देश में सियासी ध्रुवीकरण बढ़ने के साथ हर बात पर समझ बंटती चली गई है, वही हाल हेट स्पीच- यानी नफरती भाषण का है। नफरती भाषण क्या है, इसको लेकर एक समूह की जो समझ या परिभाषा है, आज की सत्ताधारी पार्टी की विचारधारा उससे सहमत नहीं है। बल्कि वैसे भाषण उसकी राजनीतिक रणनीति का धारदार हथियार बने हुए हैं। नतीजतन, अक्सर जिसे नफरती भाषण कहा जाता है, सत्ता पक्ष उस पर ध्यान तक नहीं देता। ऐसे में एक गैर-सरकारी संस्था ने नफरती भाषण देने वाले नेताओं की जो सूची तैयार की है, उस पर कार्रवाई तो दूर कोई कोई सार्थक चर्चा भी होगी- इसकी संभावना नहीं है। चुनावी सुधारों पर काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने सांसदों और विधायकों के चुनावी हलफनामों में दी गई जानकारी के आधार पर अपनी ताजा रिपोर्ट बनाई है। उसके मुताबिक 33 मौजूदा सांसदों के खिलाफ इस तरह के आरोप दर्ज हैं। इनमें से 22 यानी 66 प्रतिशत सांसद भारतीय जनता पार्टी के हैं।

ऐसे दो सांसद कांग्रेस में हैं। एक-एक सांसद कई क्षेत्रीय पार्टियों में हैं। एक निर्दलीय सांसद का नाम भी इस सूची में शामिल है। ऐसे सबसे ज्यादा सात सांसद उत्तर प्रदेश से हैं, जबकि चार तमिलनाडु से, तीन बिहार, तीन कर्नाटक और तीन तेलंगाना से हैं। एडीआर की सूची में 74 विधायकों के नाम भी हैं। इनमें भी सबसे ज्यादा जन प्रतिनिधि भाजपा के ही सदस्य हैं। इस सूची में भाजपा के 20 विधायक (27 प्रतिशत) हैं। 13 ऐसे विधायक कांग्रेस के, छह आम आदमी पार्टी के, पांच सपा और वाईएसआरसीपी के और बाकी अन्य पार्टियों के हैं। एडीआर ने उचित ही विधि आयोग की मार्च 2017 में जारी हुई एक रिपोर्ट का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया था कि भारत में किसी भी कानून में हेट स्पीच की परिभाषा नहीं दी गई है। यह एक बड़ा कारण है, जिसकी वजह से नफरती भाषणों पर कानूनी कार्रवाई नहीं हो पाती। इसलिए यह जरूरी है कि ऐसे भाषणों के खिलाफ एक सख्त कानून बनाया जाए। लेकिन फिलहाल ऐसा होने की उम्मीद नहीं है। बहरहाल, एडीआर ने एक स्वागतयोग्य योगदान किया है।

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