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भारत की बढ़ती चुनौतियां

यह विस्फोटक खुलासा हुआ है कि जून में कनाडा में खालिस्तानी उग्रवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद अमेरिका की जांच एजेंसी एफबीआई ने अपने देश में मौजूद खालिस्तानी कार्यकर्ताओं से संपर्क कर उन्हें आगाह किया था कि उनकी जान खतरे में है।

दो दिन के शुरुआती भ्रम के बाद यह बात साफ हो गई कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने भारत पर जो गंभीर आरोप लगाया, उसको पर पश्चिम के उनके खास सहयोगी देश उनसे सहमत थे। धीरे-धीरे यह बात साफ हो गई कि असल में जिन सूचनाओं के आधार पर उन्होंने भारत पर कनाडा की जमीन पर एक कनाडाई नागरिक की हत्या का इल्जाम मढ़ा, वे उन्हें पांच देशों के गठबंधन फाइव आई (पांच नेत्र) की खुफिया जानकारी साझा करने की व्यवस्था के तहत प्राप्त हुई थी। उसके बाद यह विस्फोटक खुलासा हुआ कि जून में कनाडा में खालिस्तानी उग्रवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद अमेरिका की जांच एजेंसी एफबीआई ने अपने देश में मौजूद खालिस्तानी कार्यकर्ताओं से संपर्क कर उन्हें आगाह किया था कि उनकी जान खतरे में है। इस खबर का मतलब यह है कि एफबीआई इस नतीजे पर थी कि कोई विदेशी ताकत उन खालिस्तानी कार्यकर्ताओं को निशाना बना सकती है।

इसका यह भी अर्थ है कि जिन उग्रवादियों की भारत को तलाश है, अमेरिका असल में उन्हें अपने यहां संरक्षण दे रहा है। जब ये सारी खबरें सुर्खियों में हैं, तो एक तीन साल पुरानी खबर भी चर्चा में आ गई है कि जर्मनी में तब एक भारतीय मूल के नागरिक पर भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के लिए खालिस्तान समर्थकों की जासूसी करने के आरोप में मुकदमा चलाया गया था। यानी रॉ की तरफ से पश्चिमी देशों में जासूसी का संदेह तब से वहां मौजूद था। हालांकि यह खबर भी कम परेशान करने वाली नहीं है कि कनाडा ने जिन सूचनाओं के आधार पर आरोप लगाया, उनमें वहां तैनात भारतीय राजनयिकों के बीच आपस में हुई बातचीत का ब्योरा भी है। जाहिर है, भारत के कथित सहयोगी देशों ने- जिनमें दो क्वैड समूह में भी शामिल हैं- भारतीय राजनयिकों की निजता को भंग किया। इन तमाम तथ्यों से भारतीय विदेश नीति के प्रबंधक अवश्य चिंतित हुए होंगे। इन खबरों ने भारत की पश्चिम के लगातार निकट जाने और उसके आधार पर चीन का मुकाबला करने की रणनीति के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। यह सचमुच गंभीर चुनौती है।

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