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तो अवसर चला गया!

चीन ने जो जगह खाली की, उसे बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देश भरने में कैसे कामयाब हुए और क्यों भारत पिछड़ गया? चुनौती यह सोचने की भी है कि चूंकि वो मौका हाथ से चला गया है, तो अब आगे क्या विकल्प है?

श्रम केंद्रित मैनुफैक्चरिंग सेक्टर्स से चीन के हटने से भारत के सामने बड़ा निर्यातक देश बनने का जो अवसर आया था, वह हाथ से निकल गया है। यह बात विश्व बैंक ने कही है। बैंक ने अपने इंडिया डेवलपमेंट अपडेट में जिक्र किया है कि भारत में अंतरराष्ट्रीय व्यापार से संबंधित प्रत्यक्ष या परोक्ष रोजगार पिछले एक दशक के दौरान घटा है। बताया गया है कि वस्त्र, चमड़ा, कपड़ा, रत्न एवं जेवरात आदि जैसे श्रम केंद्रित सेक्टर्स में विश्व व्यापार में भारत का हिस्सा गिरता चला गया है। जबकि बांग्लादेश, वियतनाम और पोलैंड जैसे देशों ने अपना हिस्सा बढ़ा लिया है। इसके पहले मीडिया रिपोर्टों में बताया गया था कि 2017-18 के बाद से उपरोक्त वस्तुओं के भारतीय निर्यात में 12 फीसदी की गिरावट आई है। नतीजतन, इन क्षेत्रों से जुड़े कारखाने या तो बंद हुए हैं या उन्होंने अपना उत्पादन घटाया है। स्वाभाविक है कि इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या नौकरियां गई हैं।

विश्व बैंक ने इस अंतर्विरोध का उल्लेख किया है कि एक तरफ भारत आज दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ रही अर्थव्यवस्था है, वहीं देश में शहरी युवा बेरोजगारी की दर 17 प्रतिशत के ऊंचे स्तर पर है। बैंक की राय है कि जब तक भारत अंतरराष्ट्रीय व्यापार से संबंधित क्षेत्रों के वैल्यू चेन (मूल्य शृंखला) में आगे नहीं बढ़ता है, उसके लिए बेरोजगारी की समस्या का हल ढूंढना मुश्किल बना रहेगा। गौरतलब है कि बैंक ने जिस अवधि का विस्तार से जिक्र किया है, वो मेक इन इंडिया और आत्म-निर्भर भारत जैसे नारों के शोर से भरी रही है। लेकिन अब उन नारों की हकीकत देश के सामने है। विचारणीय है कि चीन ने जो जगह खाली की, उसे बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देश भरने में कैसे कामयाब हुए और क्यों भारत इसमें पिछड़ गया? चुनौती यह सोचने की भी है कि चूंकि वो मौका हाथ से चला गया है, तो अब देश के सामने क्या विकल्प है? वर्तमान केंद्र सरकार ऐसे गंभीर मसलों पर किसी राष्ट्रीय बहस की शुरुआत करेगी, इसकी उम्मीद तो नहीं है; लेकिन विपक्ष के पास भी क्या इसकी इच्छाशक्ति एवं बौद्धिक साहस है?

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