भारत के लिए आत्म-निरीक्षण का विषय है कि हाल तक उसके प्रभाव क्षेत्र में रहे देश क्यों अब उससे दूरी बनाते दिख रहे हैं? हाल ही में भूटान और चीन के बीच सीमा विवाद सुलझाने के मानदंडों पर सहमति बन गई। अब मालदीव ने भारत को झटका दिया है।
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइजू ने राष्ट्रपति पद की शपथ लेते ही भारत को अपने सैन्य कर्मियों को उनके देश से हटा लेने का औपचारिक अनुरोध पत्र दे दिया है। इस तरह यह अटकल गलत साबित हो गई है कि ‘इंडिया आउट’ का मुद्दा उनका सिर्फ एक चुनावी नारा था और सत्ता में आने के बाद वे इस बारे में अपना रुख नरम कर लेंगे। मोइजू के शपथ ग्रहण समारोह में गए केंद्रीय मंत्री किरण रिजूजू से इस बारे में औपचारिक अनुरोध करते हुए मोइजू ने कहा- ‘सितंबर में हुए राष्ट्रपति चुनाव में मालदीव की जनता ने उन्हें भारत से ऐसा अनुरोध करने के लिए सशक्त जनादेश दिया।’ उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत मालदीव के लोगों की इस लोकतांत्रिक इच्छा का सम्मान करेगा। बेशक, मोइजू के इस कदम से भारत के लिए एक असहज स्थिति पैदा हुई है। खासकर यह देखते हुए कि मोइजू की छवि चीन समर्थक नेता की है और हाल में उन्होंने चीन में आयोजित हुए बेल्ट एंड रोड फोरम में भी हिस्सा लिया था।
जिस समय हर भू-राजनीतिक घटनाक्रम को दो खेमों में बंटती दुनिया के बीच खींचतान के संदर्भ में देखा जा रहा है, मालदीव के इस कदम को दक्षिण एशिया में चीन की एक और कामयाबी माना जाएगा। यह भारत के लिए आत्म-निरीक्षण का विषय है कि हाल के वर्षों तक उसके प्रभाव क्षेत्र में रहे देश अब क्यों उससे दूरी बनाते दिख रहे हैं? हाल ही में भूटान और चीन के बीच सीमा विवाद सुलझाने के मानदंडों पर सहमति बन गई, जिसे भारत के लिए एक झटका समझा गया है। मालदीव के बारे में मीडिया में आई रिपोर्टों में बताया गया है कि वहां भारत विरोधी माहौल बनने की शुरुआत योग का प्रसार करने के लिए “स्थानीय आबादी की भावनाओं का बिना ख्याल किए” दिखाए गए अति-उत्साह से हुई। इसका लाभ भारत विरोधी राजनीतिक गुटों ने उठाया। अगर ऐसी बातों में थोड़ा भी दम हो, तो यह जरूरी समझा जाएगा कि भारत सरकार अपने नजरिए में उचित बदलाव ले आए। पास-पड़ोस के जन मानस में भारत के लिए सद्भावना पैदा करना फिलहाल एक सही नीति होगी।