देश के विकसित होने का अर्थ आम खुशहाली एवं सबके लिए गरिमामय जीवन स्तर सुनिश्चित करना हो- जिस अर्थ में विकसित श्रेणी में शामिल देशों को यह दर्जा मिला हुआ है- तो उस राह में अनेक बाधाएं हैं, जिनसे प्रधानमंत्री अवश्य ही अवगत होंगे।
प्रधानमंत्री ने युवाओं का आह्वान किया है कि 2047 तक ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य हासिल करने के लिए वे अपनी सुविधा के दायरे से निकलें। नरेंद्र मोदी कहा कि यह ‘क्वांटम जंप’ का समय है। भारत तेजी से पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है। अगले दशक के अंत तक यह 10 ट्रिलियन डॉलर का हो जाएगा। इस वाक्य के साथ प्रधानमंत्री ने संकेत दे दिया कि ‘विकसित भारत’ से उनका तात्पर्य क्या है। मगर देश के विकसित होने का अर्थ आम खुशहाली एवं सबके लिए गरिमामय जीवन स्तर सुनिश्चित करना हो- जिस अर्थ में विकसित श्रेणी में शामिल देशों को यह दर्जा मिला हुआ है- तो उस राह में अनेक बाधाएं हैं, जिनसे प्रधानमंत्री अवश्य ही अवगत होंगे।
भारतीय रिजर्व बैंक की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट कुछ रोज पहले जारी हुई थी। उसके मुताबिक देश के जीडीपी की तुलना में आम भारतीय परिवारों पर ऋण का अनुपात बढ़ता जा रहा है। मार्च 2023 में यह 102 लाख करोड़ रुपये था, जो साल भर बाद 121 लाख करोड़ रुपये हो गया। विभिन्न देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना में यह स्तर काफी ज्यादा था। चिंताजनक पहलू यह है कि पिछले पांच वर्षों में उपभोग के लिए लिए गए कर्ज में सबसे तेज रफ्तार से बढ़ोतरी हुई। बचत के गिरते स्तर को इससे जोड़ दें, तो यह कहने का आधार बनता है कि आम परिवार जरूरी खर्चों के लिए ऋण पर आश्रित होते दिख रहे हैं।
ऐसे में बढ़ती जीडीपी से विकिसत भारत बनने की घोषणाओं को अवश्य ही संदेह की निगाह से देखा जाएगा। विकसित देश बनने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य एवं इन्फ्राक्ट्रक्चर में भारी निवेश आवश्यक होता है, ताकि वे सेवाएं सर्व-सुलभ हो सकें। मानव विकास के पैमानों पर पिछड़ते हुए कोई देश विकसित होने का दावा करे, तो दुनिया में उसे शायद ही कोई गंभीरता से लेगा। ऊंचे सपने दिखाना राजनेताओं का कर्तव्य है। मगर उसके साथ यह भी अपेक्षित होता है कि अंतिम इनसान तक विकास के लाभों को पहुंचाने के लिए वे अपने खुद को समर्पित करें। वरना, उनकी घोषणाएं जुमला बन कर रह जाती हैं!