एक तरफ देश में खरबपतियों की संख्या बढ़ रही है, दूसरी तरफ हालत यह है कि आम उपभोग घटता जा रहा है। इस बात की पुष्टि एफएमसीजी कंपनियों की रिपोर्ट से हर महीने होती है।
भारत में एक साल में एक हजार करोड़ रुपए से अधिक धन वाले व्यक्तियों की संख्या 216 बढ़ गई। 2023 में भारत में इतनी कीमत वाले व्यक्तियों की संख्या 1,319 तक पहुंच गई है। उसके पहले यह संख्या 1,103 थी। 2021 में पहली बार खरबपतियों की संख्या ने 1000 का आंकड़ा पार किया था। ताजा हुरुन इंडिया रिच लिस्ट का निष्कर्ष है कि भारत में खरबपतियों की संख्या स्थिर गति से बढ़ रही है। चूंकि अब धन का संग्रहण मुख्य रूप से शेयर बाजार, ऋण बाजार, बॉन्ड मार्केट आदि में निवेश से होता है, इसलिए धन बढ़ने का यह अनिवार्य अर्थ नहीं होता कि उसका निवेश वास्तविक अर्थव्यवस्था में होगा, जिससे रोजगार पैदा होंगे और देश में कुल उपभोग एवं जीवन स्तर में बढ़ोतरी होगी। वैसे भी गुजरे कुछ वर्षों से भारत के सबसे धनी-मानी उद्योगपति विकसित बाजारों में निवेश करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाने लगे हैं। एक रिपोर्ट में बताया गया था कि पिछले वित्त वर्ष में लगभग आठ लाख करोड़ रुपये का निवेश भारत से विदेश गया। नतीजा यह है कि एक तरफ देश में खरबपतियों की संख्या बढ़ रही है, दूसरी तरफ हालत यह है कि आम उपभोग घटता जा रहा है।
इस बात की पुष्टि एफएमसीजी कंपनियों की रिपोर्ट से हर महीने होती है। ताजा रिपोर्ट के मुताबिक आम उपभोग की चीजें बनाने वाली इन कंपनियों की बिक्री में इस वर्ष जुलाई से सितंबर की तिमाही में 2.3 प्रतिशत की गिरावट आई। यह सूरत तब रही, जब सितंबर में उनकी बिक्री बढ़ी, क्योंकि किराना दुकानदारों ने त्योहारों के सीजन का पूर्वानुमान लगाकर अपना भंडार बढ़ाया। एमएमसीजी कंपनियों का कारोबार लोगों की वास्तविक आय पर निर्भर करता है, जिसमें महंगाई और रोजगार की खराब स्थितियों के कारण लगातार गिरावट आई है। तो उपरोक्त दोनों सूरतें भारत की वर्तमान कथा का हिस्सा हैं। इस कहानी को ठीक से समझना हो, तो कार बाजार पर ध्यान देना चाहिए, जहां सबसे महंगी कारों की मांग बढ़ती चली गई है, जबकि एंट्री-लेवल की कारों के खरीदार बमुश्किल मिल रहे हैं। चूंकि आज सार्वजनिक विमर्श में ऐसी चर्चाएं नहीं होतीं, लेकिन यह मुद्दा हैः आखिर यह हालत देश को कहां ले जाएगी?