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दरकता हुआ बुनियादी ढांचा

अफसोसनाक यह है कि हादसों के बाद अक्सर किसी नीति-निर्धारक की जवाबदेही तय नहीं होती। यह तर्क स्वीकार्य नहीं है कि कोई ढांचा कई वर्ष पुराना था, इसलिए वह गिर गया। आखिर मरम्मत और लगातार देखरेख भी कोई चीज होती है!

भारतीय वायु सेना का एक लड़ाकू जैगुआर विमान बुधवार को राजस्थान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसमें दो पायलटों की मौत हो गई। बताया गया है कि विमान नियमित प्रशिक्षण उड़ान पर था। इस घटना ने एक बार फिर भारतीय वायु सेना के पास मौजूद संसाधनों की स्थिति की ओर ध्यान खींचा है। कुछ तथ्य गौरतलब हैः भारतीय वायु सेना में 40 जैगुआर शमशेर जेट 1979 में- यानी आज से 46 साल पहले- शामिल किए गए थे। ब्रिटेन के ब्रिटिश एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन और फ्रांस की ब्रिग्वे एविएशन कंपनियों के इस संयुक्त उत्पाद की खरीदारी के साथ भारत के हिंदुस्तान एरॉनोटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को इसके निर्माण का लाइसेंस मिला था।

एचएएल ने 2008 तक 100 और जैगुआर विमान बनाए। बाद में मौजूद विमानों की मरम्मत में जरूरी पाट-पुर्टों को जुटाने के लिए भारत ने कुछ अन्य देशों से ऐसे विमान खरीदे, जिनका उपयोग रोका जा चुका था। क्या ऐसे विमानों की मौजूदगी भारतीय वायु सेना में होनी चाहिए? हाल के ऑपरेशन सिंदूर ने साफ कर दिया है कि नए दौर के युद्ध में वायु सेना की सर्व-प्रमुख भूमिका बन गई है। ऐसे में वायु सेना को चुस्त-दुरुस्त रखना राष्ट्रीय दायित्व है। इस मामले में कोई भी कोताही या कंजूसी नहीं होनी चाहिए। इसीलिए चुरू जिले में हुई दुर्घटना झकझोरने वाली मालूम पड़ी है। जिस समय अपने देश में हर क्षेत्र में बुनियादी ढांचा दरकता मालूम पड़ रहा है, ऐसे हादसे गहरी चिंता का विषय बन जाते हैं।

बुधवार को ही गुजरात में वडोदरा को आणंद से जोड़ने वाला पुल गिर गया। वहां कम-से-कम 11 लोगों की मौत हो गई। स्थानीय मीडिया के मुताबिक उन्होंने इस पुल में पड़ती दरार को लेकर कई रिपोर्ट्स दिखाई थीं। मगर उन पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। अफसोसनाक यह है कि ऐसे तमाम हादसों में अक्सर किसी नीति-निर्धारक की जवाबदेही तय नहीं होती। यह तर्क स्वीकार्य नहीं हो सकता कि कोई उपकरण या इन्फ्रास्ट्रक्चर कई वर्ष पुराना था, इसलिए वह गिर गया। आखिर जरूरत के हिसाब से मरम्मत और लगातार देखरेख भी कोई चीज होती है। जो लोग इसकी उपेक्षा के दोषी हों, उनकी जवाबदेही अवश्य तय होनी चाहिए।

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