जयशंकर की इस्लामाबाद यात्रा पर ज्यादा कयासबाजी की जरूरत नहीं है। फिलहाल सिर्फ इतनी अपेक्षा काफी होगी कि तत्कालीन पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो एससीओ बैठक में भाग लेने जब गोवा आए थे, तो उस समय जैसी कड़वाहट इस बार पैदा ना हो।
पाकिस्तान में मंगलवार- बुधवार को आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) राज्याध्यक्ष परिषद की 23वीं बैठक में भारत की नुमाइंदगी करने विदेश मंत्री एस. जयशंकर इस्लामाबाद पहुंच रहे हैं। जयशंकर स्पष्ट कर चुके हैं कि यह यात्रा बहुपक्षीय मंच की बैठक में हिस्सेदारी के लिए है, जिसका कोई द्विपक्षीय पहलू नहीं है। जब जयशंकर की यात्रा का एलान हुआ, तो भारतीय मीडिया में यह चर्चित हुआ था कि नरेंद्र मोदी सरकार के दस साल में यह सिर्फ दूसरा मौका है, जब भारतीय विदेश मंत्री पाकिस्तान जाएंगे। इसके पहले सुषमा स्वराज बतौर विदेश मंत्री वहां गई थीं, हालांकि उनकी यात्रा का मौका भी बहुपक्षीय बैठक ही था।
चूंकि मोदी सरकार ने “आतंकवाद को मदद खत्म होने तक” पाकिस्तान से संवाद ना करने की नीति अपना रखी है, इसलिए ऐसे मौकों पर मीडिया में एक तरह की सनसनी पैदा होना लाजिमी ही है। जबकि भारत और पाकिस्तान जिन साझा अंतरराष्ट्रीय मंचों के सदस्य हैं, उनकी बैठक में हिस्सेदारी के लिए दोनों देशों के अधिकारियों को कभी ना कभी एक दूसरे की यात्रा करना स्वाभाविक समझा जाना चाहिए। इसलिए जयशंकर की इस्लामाबाद यात्रा को लेकर ज्यादा कयासबाजी की जरूरत नहीं है। इस मौके पर सिर्फ इतनी अपेक्षा काफी होगी कि 2023 के आरंभ में तत्कालीन पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने जब गोवा आए, तो उस समय जिस तरह की कड़वाहट दोनों देशों में पैदा हुई थी, वैसा इस बार ना हो। ये कड़वाहट बहुपक्षीय मंच पर द्विपक्षीय विवादों को उठाने की वजह से हुई थी।
बेहतर होगा कि दोनों देश अब अपनी चर्चा को एससीओ के दायरे में सीमित रखें। एससीओ नई बनती विश्व व्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण मंच है। हालांकि चीन के ज्यादा प्रभाव के कारण इसमें भारत अपने को बहुत सहज महसूस नहीं करता, फिर भी ब्रिक्स एवं एससीओ जैसे नव-प्रासंगिक मंचों में भारत की मौजूदगी अहम मानी जाएगी। वैसे देखा जाए, तो ब्रिक्स का एजेंडा तय करने में भी रूस और चीन विशेष भूमिका निभा रहे हैं। इस वर्ष रूस के बाद अगले साल इसकी शिखर बैठक चीन में होगी। तब भारत के लिए एक और चुनौती पेश आएगी।