Election Commission: पता नहीं चुनाव आयोग को दिख रहा है या नहीं कि भादो के महीने में उत्तर भारत के किसी राज्य में चुनाव कराने का क्या नतीजा होता है।
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जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं। हरियाणा में पांच अक्टूबर को एक साथ सभी 90 सीटों पर मतदान होगा। पांच अक्टूबर को भी मतदान इसलिए होगा क्योंकि राज्य के कई धार्मिक, सामाजिक समूहों और राजनीतिक दलों ने कई कारणों से एक अक्टूबर की तारीख आगे बढ़ाने का आग्रह किया था। अगर तारीख नहीं बढ़ी होती तो एक अक्टूबर को मतदान होता। पांच अक्टूबर को होने वाले मतदान के लिए 12 सितंबर को नामांकन की प्रक्रिया पूरी हुई और 16 सितंबर को नाम वापसी की आखिरी तारीख है।
इस बीच पूरे राज्य में जम कर बारिश हो रही है और इस बारिश में ही पार्टियों के उम्मीदवारों ने किसी तरह से नामांकन की प्रक्रिया पूरी की और उम्मीद कर रहे हैं कि बारिश थम जाए तो वे ठीक तरीके से प्रचार कर सकें। खुद भाजपा के नेता इस बात को लेकर चिंतित थे कि कुरुक्षेत्र में प्रधानमंत्री की पहली रैली कैसे होगी क्योंकि चारों तरफ कीचड़ भरा था। बड़ी मुश्किल से सभा के लिए मैदान तैयार किया जा सका। दिल्ली से सटे फरीदाबाद और गुरुग्राम में एक दर्जन से ज्यादा विधानसभा सीटें हैं, जहां पिछले पूरे हफ्ते बारिश से लोग परेशान रहे। लोग चार चार घंटे जाम में फंसे रहे और फरीदाबाद में जलभराव में दो लोग डूब कर मर गए।
घोषणा से पहले मौसम और त्योहारों का ध्यान रखे
चुनाव आयोग से उम्मीद की जाती है कि तारीखों की घोषणा से पहले वह मौसम और त्योहारों का ध्यान रखे। लेकिन मौजूदा चुनाव आयोग हर चुनाव में इन चीजों की अनदेखी कर रहा है। हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल तीन नवंबर तक है। सो, आयोग भादो के महीने में चुनाव कराने की बजाय इसे अक्टूबर के अंत में करा सकता था। उसी समय महाराष्ट्र और झारखंड के भी चुनाव हो जाते। लेकिन चुनाव आयोग ने इनको अलग अलग कर दिया। इससे हरियाणा का चुनाव भरी बरसात में पड़ गया। (Election Commission)
इतना ही नहीं चुनाव की तारीखों की वजह से संवैधानिक संकट अलग खड़ा हुआ। आचार संहिता लागू होने के बाद विधायकों को राज्यसभा के लिए वोट करना पड़ा। दूसरे, मार्च के बाद विधानसभा की बैठक नहीं हुई थी और छह महीने में एक बैठक होने की संवैधानिक अनिवार्यता सर पर आ गई तो पिछले हफ्ते मुख्यमंत्री को कैबिनेट की बैठक बुला कर विधानसभा भंग करनी पड़ी। हरियाणा के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ। सो, उम्मीद करनी चाहिए कि चुनाव आयोग इनसे सबक लेगा और आगे के चुनावों की घोषणा करते हुए इनका ध्यान रखेगा।