राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

तब दिया, अब वापस!

ladki bahin yojanaImage Source: ANI

ladki bahin yojana: महाराष्ट्र की मिसाल यह जरूर बताती है कि चुनाव जीतने के लिए पार्टियां किसी सियासी बेईमानी तक जा सकती हैं। मतलब निकल चुकने के बाद दिए गए पैसे को वापस लेना सियासी बेईमानी नहीं तो और क्या है!

महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन- महायुति को पराजय का मुंह देखना पड़ा, तो चार महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन नेतृत्व ने जो तकरीबें सोचीं, उनमें एक थी- खुले हाथ गरीब मतदाताओं को सरकारी पैसा बांटना।

इसके लिए लड़की बहिन योजना शुरू की गई। उधर प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों के लिए किस्तें जारी की गईं।(ladki bahin yojana)

मगर जैसाकि कहा जाता है, रुपये पेड़ पर नहीं उगते, तो इसका अहसास महायुति नेतृत्व को भी हुआ, मगर तब, जब भारी बहुमत से सत्ता में उसकी वापसी हो गई।

तो तुरत-फुरत माहौल बनाया गया कि बहुत से “अयोग्य” लाभार्थियों को पैसा मिल गया है। नई कैबिनेट ने फैसला किया कि ऐसे लाभार्थियों से पैसा वापस लिया जाएगा। मगर अब देवेंद्र फड़णवीस सरकार को सरकार को अहसास हुआ है कि ये काम आसान नहीं है।

also read: ‘कर्तव्य पथ पर महाकुंभ’ लोगों की पहली पसंद

आखिर लड़की बहिन योजना के तहत 30 लाख “अयोग्य” लाभार्थियों को छह महीनों तक 1500 रुपये- यानी नौ हजार रुपयों- का भुगतान हुआ है।(ladki bahin yojana)

उधर 12 लाख “अयोग्य” व्यक्तियों को किसान सम्मान निधि की राशि मिली है। कुल जो रकम वसूल करनी है, वह चार हजार करोड़ रुपये से ज्यादा है।

महाराष्ट्र इस बात की मिसाल है कि देश भर में चुनाव जीतने के लिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में कहें, तो रेवड़ी बांटने की जो होड़ मची है, उसका राजकोषीय नतीजा क्या हो रहा है।

चूंकि इस होड़ में कोई पार्टी पीछे नहीं है, इसलिए देश के भविष्य की दृष्टि से सभी कठघरे में खड़ी हैं। होड़ किसने शुरू की, यह अप्रासंगिक है।(ladki bahin yojana)

कम यादाश्त के लोग तोहमत अरविंद केजरीवाल पर लगाते हैं, लेकिन सिलसिला कम-से-कम एमजी रामचंद्रन- जयललिता तक तो जरूर ही जाता है।

दीर्घकालिक बुनियादी विकास एवं लोगों की बेहतरी के बारे में जब राजनीतिक दल नजरिया खो चुके हों, तो उनसे सुधार की अपेक्षा करना निराधार ही है।(ladki bahin yojana)

मगर, महाराष्ट्र की मिसाल यह जरूर बताती है कि चुनाव जीतने के लिए पार्टियां किसी सियासी बेईमानी तक जा सकती हैं। मतलब निकल चुकने के बाद दिए गए पैसे को वापस लेना सियासी बेईमानी नहीं तो और क्या है!

By NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *