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भारत बना चीनी अड्डा?

भारत में मोबाइल फोन, इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी, सोलर पैनल आदि का उत्पादन बेशक बढ़ा है। लेकिन ये तमाम कामयाबियां वैल्यू शृंखला के डाउन स्ट्रीम से संबंधित हैं, जबकि अप स्ट्रीम के मामले में चीन पर भारत की निर्भरता बढ़ गई है।’

एक बिजनेस अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक चीन की स्मार्टफोन और इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां अपने भारत स्थित संयंत्रों के जरिए पश्चिम एशिया, अफ्रीका, और यहां तक कि अमेरिका को अपने उत्पाद भेज रही हैं। ये उत्पाद पहले चीन से भारत स्थित संयंत्रों को भेजे जाते हैं। फिर वहां से उनका दुनिया के दूसरे हिस्सों में निर्यात किया जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक पहले इन उत्पादों का निर्यात सीधे चीन से या वियतनाम स्थित चीनी कंपनियों के संयंत्रों से किया जाता था। मगर दुनिया में बदले व्यापार माहौल के कारण वहां ऐसा करने में कई पेचीदगियां आ गई हैँ। उधर भारत सरकार ने निर्यात प्रोत्साहन और स्थानीय उत्पादन बढ़ाने को अपनी प्राथमिकता बनाई है।

इसका लाभ चीनी कंपनियां उठा रही हैं। अखबार ने यह निष्कर्ष रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के पास चीन कंपनियों के जमा दस्तावेजों का अध्ययन कर निकाला है। वैसे इसकी पुष्टि अमेरिकी थिंक टैंक हिनरिक फाउंडेशन की पिछले महीने आई एक अध्ययन रिपोर्ट से भी होती है। इस रिपोर्ट के आधार पर एक अमेरिकी अर्थशास्त्री ने कहा है कि ‘मेक इन इंडिया तेजी से मेड इन चाइना’ का समानार्थी बन गया है। हिनरिक फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक ‘भारत में मोबाइल फोन, इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी, सोलर पैनल आदि का उत्पादन बेशक बढ़ा है। लेकिन सफलता की अधिकतर कहानियों में एक बात सामान्य है- ये तमाम कामयाबियां वैल्यू शृंखला के डाउन स्ट्रीम से संबंधित हैं, जबकि अप स्ट्रीम के मामले में चीन पर भारत की निर्भरता बढ़ गई है।’

मतलब यह कि भारत में उत्पादित वस्तुओं में चीनी तकनीक और हाई टेक पाट-पुर्जों का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है। दोनों उपरोक्त रिपोर्टों में इसे चीन से भारत में लगातार बढ़ते गए आयात का प्रमुख कारण बताया गया है। किसी वैल्यू चेन को कायम करने की कोशिश के आरंभिक चरण में ऐसा होना बहुत चिंता का विषय नहीं है। मगर वैल्यू चेन में चढ़ने के लिए जरूरी है कि विश्वविद्यालयों से लेकर अनुसंधान संस्थाओं एवं कंपनियों तक में शोध एवं बौद्धिक संपदा विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए। इसके लिए बजट बढ़े। चिंताजनक यह है कि ये काम नहीं हो रहा है।

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