अग्निपथ योजना रिटायर्ड सैनिकों की पेंशन पर बढ़ते खर्च का बोझ घटाने के लिए केंद्र ने शुरू किया था। ओआरओपी योजना लागू होने के बाद से पेंशन खर्च में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। इस समस्या का हल क्या है?
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक भारतीय सेना ने अग्निपथ योजना को बेहतर बनाने के कई सुझाव सरकार को भेजे हैं। सूत्रों के हवाले से ये खबर उस समय आई है, जब केंद्र में नई सरकार के गठन के दौरान ऐसी चर्चा गर्म थी कि भाजपा के कुछ सहयोगी दल इस योजना की समीक्षा चाहते हैं। अब इस खबर के जरिए बताया गया है कि सेना ऐसी समीक्षा पहले ही कर चुकी है। सेना ने जो सुझाव दिए हैं, उनमें एक यह है कि चार साल की नौकरी के बाद सेना में नियमित रूप से भर्ती किए जाने वाले अग्निवीरों की संख्या 25 से बढ़ा कर 60-70 प्रतिशत कर दी जाए। अग्निवीरों का कार्यकाल चार साल से बढ़ा कर 7-8 वर्ष करने का सुझाव भी सेना ने दिया है। साथ ही अग्निवीर के रूप में भर्ती के लिए न्यूनतम उम्र बढ़ा कर 23 साल करने और सेवा के दौरान घायल या जख्मी होने पर उन्हें दी जाने वाली सहायता राशि में वृद्धि की सिफारिश की गई है।
प्रश्न है कि क्या ये सुझाव सरकार मानेगी? अग्निपथ योजना के बारे में आम समझ है कि रिटायर्ड सैनिकों की पेंशन पर बढ़ते खर्च का बोझ घटाने के लिए केंद्र ने इसे शुरू किया था। वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) योजना लागू होने के बाद से पेंशन खर्च में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। पिछले साल यह खर्च सैनिकों को दिए जाने वाले वेतन से भी ज्यादा हो गया। इस तरह रक्षा बजट का और भी ज्यादा हिस्सा अब वेतन, भत्तों, पेंशन और नियमित संचालन मद पर खर्च होने लगा है। नतीजतन, पूंजीगत निवेश के लिए बहुत कम रकम बचती है। भारत सरकार की राजकोषीय स्थिति ऐसी नहीं है कि वह समग्र रक्षा बजट में बहुत बड़ी बढ़ोतरी कर सके। तो अग्निपथ स्कीम लाया गया। इस योजना की वाजिब आलोचनाएं मौजूद हैं। मगर समाधान क्या है? अब ओआरओपी तो वापस नहीं लिया जा सकता। ऐसे में अग्निपथ योजना में कुछ दिखावटी बदलाव कर आलोचनाओं की धार कम करने की कोशिश करना ही एकमात्र विकल्प बचता है। लेकिन ऐसे परिवर्तन पर्याप्त नहीं होंगे। उनसे खड़ी हुई बुनियादी समस्याएं हल नहीं होंगी।