सवाल यह है कि वेबसाइट के प्रबंधकों ने कहां से पैसा लिया, उसकी जानकारी किसी सब-एडिटर या टेक्निकल कर्मचारी को कैसे हो सकती है? बात कर्मचारियों तक नहीं रही। बल्कि वेबसाइट पर लिखने वाले फ्रीलांसरों तक को नहीं बख्शा गया।
अगर किसी व्यक्ति और संस्था ने किसी प्रकार के गैर-कानूनी गतिविधि में भाग लिया हो, उसके खिलाफ न्याय की उचित प्रक्रिया के तहत कार्रवाई जरूर होनी चाहिए। यह बात वेबसाइट न्यूजक्लिक पर भी लागू होती है। उस पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में पहले से मुकदमा चल रहा था। पिछले अगस्त में उस पर एक नया मुकदमा अमेरिकी अखबार में छपी रिपोर्ट के आधार पर दर्ज किया गया, जिसमें आरोप है कि वेबसाइट को एक ऐसे अमेरिकी उद्योगपति ने धन दिया, जो चीन की तरफ से चलाए जाने वाले प्रचार अभियान को आगे बढ़ाता है। अखबारी रिपोर्ट साक्ष्य हो सकती है या नहीं, इस पर न्यायपालिका फैसला देगी। बहरहाल, इस आरोप की जांच में जो तरीका दिल्ली पुलिस ने अपनाया है, वह सचमुच अभूतपूर्व है। मंगलवार को न्यूजक्लिक से जुड़े दर्जनों स्थलों पर छापे मारे गए। हैरतअंगेज यह है कि इस दौरान उस वेबसाइट में करने वाले जूनियर स्तर के कर्मचारियों के घर पर भी पुलिस ने दबिश दी और उनके मोबाइल फोन एवं लैपटॉप जब्त कर लिए।
सवाल यह है कि वेबसाइट के प्रबंधकों ने कहां से पैसा लिया, उसकी जानकारी किसी सब-एडिटर या टेक्निकल कर्मचारी को कैसे हो सकती है? बात कर्मचारियों तक नहीं रही। बल्कि वेबसाइट पर लिखने वाले फ्रीलांसरों तक को नहीं बख्शा गया। खुद दिल्ली पुलिस ने बताया है कि उसने 46 व्यक्तियों से पूछताछ की और उनमें से कई को आगे भी इसके लिए तैयार रहने को कहा गया है। क्या यह न्याय की उचित प्रक्रिया है? या यह उसी सोच का एक और इजहार है, जिसमें आरोपी के साथ-साथ उसके परिजनों को भी दोषी मान कर दंडित किया जाता है? सामूहिक दंड आधुनिक न्याय सिद्धांत में सिरे से अस्वीकार्य है। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उसका प्रचलन बढ़ता जा रहा है। तो जिस तरह बिना किसी न्यायिक आदेश के विभिन्न स्थानों पर संदिग्ध आरोपियों के घरों पर बुल्डोजर चलाए जा रहे हैं, उसी तरह न्यूजक्लिक के दफ्तर को भी सील कर दिया गया है। वैसे उससे भी ज्यादा आपत्तिजनक यह है कि सभी कर्मचारियों को अभियुक्त मान लिया गया है। भारत के लिए यह अभूतपूर्व एवं अनदेखा तजुर्बा है।