शायद ही कोई इससे असहमत होगा कि भारत को ‘चिप से शिप’ तक में आत्म-निर्भर होना चाहिए। ऐसा नहीं है, तो बेशक उसका दोष पूर्व सरकारों पर भी जाता है। मगर देश की कमान 11 साल से नरेंद्र मोदी के हाथ में है।
प्रधानमंत्री ने कहा है कि कोई बड़ा देश भारत का दुश्मन नहीं है, देश का शत्रु दूसरे देशों पर इसकी निर्भरता है। इसलिए अब चिप से शिप (जहाज) तक- सब देश में बनना चाहिए। नरेंद्र मोदी की ये टिप्पणी गौरतलब हैः ‘भारत लंबे समय तक वैश्विक समुद्री शक्ति था। 50 साल पहले तक भारत में जहाज बनते थे। मगर जहाज निर्माण पर जोर देने के बजाय कांग्रेस सरकारों ने विदेशी जहाजों को भाड़ा देना तय किया। आज भारत लगभग छह लाख करोड़ रुपये शिपिंग सेवा के बदले किराया देता है। ये रकम लगभग भारत के रक्षा बजट के बराबर है।’
प्रधानमंत्री की पहली बात से सहज सहमत हुआ जा सकता है। हर देश अपने हित में किसी अन्य देश से संबंध बनाता है- कोई किसी का दोस्त या दुश्मन नहीं होता। और जो आंकड़ा मोदी ने दिया, उसके मद्देनजर इससे शायद ही कोई असहमत होगा कि भारत को ‘चिप से शिप’ तक में आत्म-निर्भर होना चाहिए। भारत ऐसा नहीं है, तो बेशक उसका दोष तमाम पूर्व सरकारों पर जाता है। मगर देश की कमान 11 साल से नरेंद्र मोदी के हाथ में है। देश गलत राह पर था, तो उसे सुधारना क्या उनका कर्त्तव्य नहीं था?
और क्या यह सच नहीं है कि गुजरे 11 वर्षों में मोदी सरकार की प्राथमिकता निर्यात केंद्रित और पश्चिम बाजार उन्मुख नीतियों के जरिए भारत को “महाशक्ति” बनाने की रही। अब यह नीति औंधे मुंह गिरी है, जिससे देश के मैनुफैक्चरिंग सेक्टर से लेकर सेवा क्षेत्र तक गहरे संकट में फंस गए हैं। तो इस वक्त पर स्वदेशी का गुणगान करना और ‘चिप से शिप’ तक जैसे आह्वान करना लोगों को अजीबोगरीब मालूम पड़ सकता है। फिर ऐसा अर्थव्यवस्था की दिशा में बुनियादी परिवर्तन की बिना कोई पहल किए किया जा रहा है। मोदी को जवाब इस बात का देना चाहिए मेक इन इंडिया और स्टार्ट-अप, स्टैंड-अप, डिजिटल जैसे तमाम अन्य ‘इंडिया’ और स्मार्ट सिटी जैसी बड़ी-बड़ी घोषणाओं का क्या हुआ? चूंकि इस पर चुप्पी है, इसलिए लोग अगर मौजूदा नारों को महज एक और ‘जुमला’ ही मानें, तो क्या इसके लिए वे दोषी होंगे!