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लाल सागर का संकट

अमेरिकी हमलों की शुरुआत के महीने भर बाद यह साफ है कि हूतियों पर उसका कोई असर नहीं हुआ है। हूती लगातार पश्चिमी जहाजों को भी निशाना बना रहे हैं। ऐसा करने की उनकी क्षमता किस हद तक बरकरार है, इसकी झलक फिर देखने को मिली है।

इस हफ्ते की शुरुआत के साथ यमन के अंसारुल्लाह गुट (जिसे हूती नाम से भी जाना जाता है) ने लाल सागर और आस पास के क्षेत्रों में जोरदार हमले किए हैं। अंसारुल्लाह के मुताबिक रविवार को अदन की खाड़ी में एक ब्रिटिश मालवाही जहाज पर उन्होंने मिसाइलें दागीं, जिनसे जहाज को गंभीर नुकसान पहुंचा। ब्रिटिश अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि ब्रिटिश जहाज के पास विस्फोट हुआ। उन्होंने कहा है कि इस खबर की जांच कराई जा रही है। सोमवार को अंसारुल्लाह ने दो अमेरिकी जहाजों पर निशाना साधा। खबर है कि इन मिसाइलों से इन जहाजों को खासा नुकसान हुआ है। उन्होंने अमेरिका के एक हमलावर एमक्बू-9 रीपर ड्रोन को भी मार गिराया। गजा में फिलस्तीनियों के नरसंहार के विरोध में हूतियों ने नवंबर में लाल सागर से गुजरने वाले इजराइल से किसी भी प्रकार से संबंधित जहाजों पर हमला करने का एलान किया था। इसके जवाब में पिछले महीने अमेरिका और ब्रिटेन ने यमन में हूती ठिकानों पर हमले शुरू किए।

लेकिन इन हमलों की शुरुआत के महीने भर बाद यह साफ है कि हूतियों पर उसका कोई असर नहीं हुआ है। बल्कि उसके बाद से हूतियों ने ब्रिटेन और अमेरिका से संबंधित जहाजों को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है। ऐसा करने की उनकी क्षमता किस हद तक बरकरार है, इसकी झलक इस हफ्ते फिर देखने को मिली है। इसका कारण यह बताया जाता है कि आठ साल तक सऊदी अरब से चले युद्ध के दौरान हूतियों ने अपने हथियारों और लड़ाकुओं को गुफाओं और पहाड़ों के बीच बने बंकरों में छिपा कर रखने का मजबूत इंतजाम किया हुआ है। अमेरिका और ब्रिटेन के लड़ाकू जहाजों को उन ठिकानों की टोह नहीं है। इस नाकामी से एक नौसैनिक शक्ति के रूप में अमेरिका और ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा में सेंध लगी है। चूंकि कारोबारी जहाजों के लिए लाल सागर का रास्ता असुरक्षित हो गया है, तो उसका खराब असर अमेरिका और यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं पर भी हो रहा है। इस रूप में इजराइल का हर हाल में समर्थन करने की नीति की महंगी कीमत पश्चिम को चुकानी पड़ रही है।

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By NI Editorial

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