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आंकड़ों के आईने में

EconomyImage Source: AIN

उत्पादक Economy में बेहतर रोजगार पैदा नहीं होंगे, तो लोग ऋण पर अधिक आश्रित होते जाएंगे, जबकि संसाधन संपन्न लोगों के पास वित्तीय संपत्तियों में निवेश के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचेगा। भारत में यही हो रहा है। 

भारतीय रिजर्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट से सामने आए तीन पहलुओं ने ध्यान खींचा है। पहली यह कि आम भारतीय परिवारों पर औसत कर्ज में बढ़ोतरी का सिलसिला थम नहीं रहा है। दूसरीः भारतीय मध्य वर्गीय परिवारों में शेयर और बॉन्ड में निवेश के प्रति आकर्षण कायम है। तीसरीः रियल एस्टेट क्षेत्र संकटग्रस्त बना हुआ है, क्योंकि उसमें निवेश के मकसद से लिए जाने वाले कर्ज में गिरावट जारी है। ये तीनों बातें दरअसल, भारत की उत्पादक अर्थव्यवस्था के बड़े संकट की ओर इशारा करती हैं। इनसे यह जाहिर होता है कि उत्पादक अर्थव्यवस्था में बेहतर रोजगार पैदा नहीं होंगे, तो लोग ऋण पर अधिक आश्रित होते जाएंगे, जबकि संसाधन संपन्न लोगों के पास वित्तीय संपत्तियों (शेयर, बॉन्ड आदि) में निवेश के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचेगा।

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जो लोग जोखिम से बच कर चलते हैं, वे अपना पैसा बैंकों की बचत योजनाओं में लगाएंगें। तो ताजा आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2023-24 में परिवारों पर कर्ज 18.79 लाख करोड़ तक पहुंच गया। इसके पिछले वित्त वर्ष में यह 15.96 लाख करोड़ रुपये था। अब मौजूद ऋण की मात्रा सकल घरेलू उत्पाद के 6.4 प्रतिशत के बराबर है। दूसरी तरफ परिवारों के पास मौजूद वित्तीय संपत्तियां बढ़ कर 15.52 लाख करोड़ की हो गई हैं, जो जीडीपी के 5.3 फीसदी के बराबर हैं। पिछले साल यह रकम 13.40 लाख करोड़ रुपये थी। मकान खरीदने के लिए लिए जाने वाले कर्ज में 2023-24 में 3.3 लाख करोड़ रुपये की गिरावट आई।

उधर बैंकों में परिवारों की जमा रकम में 2022-23 के मुकाबले 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। अब यह 14.35 लाख करोड़ तक पहुंच गई है। जिन लोगों ने ऋण लिया है, मुमकिन है, उनमें से कुछ ने उस रकम का वित्तीय संपत्तियों में निवेश किया हो। मगर ज्यादातर ऐसे लोग मुसीबत के मारे हैं। इसका प्रमाण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से लिए जाने वाले कर्ज में नवंबर के बाद आई गिरावट है, जब आरबीआई ने इससे संबंधित नियम सख्त बना दिए थे। इन कंपनियों से कोई संपन्न व्यक्ति कर्ज नहीं लेता। तो साफ है, ये आंकड़े आम जन की आर्थिक मुसीबतों का आईना हैं।

By NI Editorial

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