राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

मायूस हैं रिटेल निवेशक?

Stock Market Hyundai IPOImage Source: ANI

Stock Market Hyundai IPO: क्या भारतीय शेयर बाजार संस्थागत और बड़े खिलाड़ियों का मैदान बन गया है? जो आम लोग इस मार्केट में उतरे हैं, आखिर उनका तजुर्बा अच्छा क्यों नहीं है? इन सवालों के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था का मौजूदा स्वरूप जुड़ा हुआ है।

also read: गृहयुद्ध कितने दशक बाद?

ह्यूंदै के आईपीओ पर सबकी निगाहें

गुजरे हफ्ते दक्षिण कोरियाई कार कंपनी ह्यूंदै ने भारतीय शेयर बाजार का सबसे बड़ा आईपीओ लॉन्च किया। इस तरह उसने 2022 में आए भारतीय जीवन बीमा (एलआईसी) के आईपीओ से कायम हुए रिकॉर्ड को तोड़ दिया। 3.3 बिलियन डॉलर (करीब 27,870 करोड़ रुपए) के ह्यूंदै के आईपीओ पर सबकी निगाहें टिकी थीं। समग्र रूप से देखा जाए, तो ह्यूंदै का दांव कामयाब रहा। कंपनी ने 9.97 करोड़ शेयर बेचने की पेशकश की थी, जबकि 23.63 करोड़ शेयरों के लिए अर्जियां आई हैं। यानी कुल उपलब्ध शेयरों के 237 प्रतिशत के बराबर मांग रही। बहरहाल, इसमें एक पेच है। दरअसल, क्यूआईबीज (क्वालीफाइड संस्थागत खरीदारों) के लिए जितने शेयर रखे गए थे, उन्होंने उसके 697 प्रतिशत के बराबर शेयर खरीदे।

खुदरा खरीदारों की प्रतिक्रिया मद्धम

मगर खुदरा खरीदारों की प्रतिक्रिया मद्धम रही। उनके लिए जितने शेयर रखे गए, उसके आधे ही बिक पाए। असल ध्यान इसी पहलू ने खींचा है। ऐसा क्यों हुआ? बताया जाता है कि हाल में जो आईपीओ आए हैं, उनको लेकर खुदरा खरीदारों का अनुभव अच्छा नहीं है। यह बात एलआईसी के आईपीओ पर भी लागू होती है। तो क्या भारतीय शेयर बाजार संस्थागत और बड़े खिलाड़ियों का मैदान बन गया है? जो आम लोग इस मार्केट में उतरे हैं, आखिर उनका तजुर्बा अच्छा क्यों नहीं है? इन सवालों के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था का मौजूदा स्वरूप जुड़ा हुआ है। इस स्वरूप को कई विशेषज्ञ के (अंग्रेजी के अक्षर) आकार की अर्थव्यवस्था कहते हैं- यानी जो ऊपर है, वह ऊपर जा रहा है, जबकि जो नीचे है, वह बदहाल हो रहा है। (Stock Market Hyundai IPO) 

ऐसा वित्तीय बाजारों में भी हुआ है। पिछले चार सालों में भारतीय शेयर बाजार 210 फीसदी बढ़ा है। इसके बावजूद छोटे निवेशकों का अनुभव मिला-जुला ही रहा है। बेशक ह्यूंदै ने आईपीओ के जरिए अपने तय लक्ष्य को हासिल कर लिया है। ह्यूंदै की योजना आईपीओ से मिले फंड को शोध कार्यों और नई कारों को विकसित करने में लगाने की है। कंपनी ग्लोबल साउथ के दूसरे देशों के लिए भारत को शोध एवं उत्पादन केंद्र बनाना चाहती है। अभी भी वह भारत में बनी गाड़ियों को 90 से ज्यादा देशों में भेज रही है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *