सुप्रीम कोर्ट मान रहा है कि ईडी बिना क्वालिटी साक्ष्य के मुकदमे दर्ज कर रही है। उसने आरोपों को साबित करने में ईडी की नाकामी पर भी रोशनी डाली है। तो सवाल उठेगा कि आखिर ईडी के अधिकारी ऐसा क्यों कर रहे हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को जो नसीहतें दीं और इस क्रम में जिन तथ्यों को देश के सामने रखा, उससे इस एजेंसी की कार्य प्रणाली बेनकाब हुई है। तीन जजों की बेंच ने छत्तीसगढ़ के एक मामले की सुनवाई के दौरान ईडी से कहा- ‘इस मामले में आप कुछ गवाहों के बयान और हलफनामों का बखान कर रहे हैं। ये जुबानी साक्ष्य हैं। ऐसे जुबानी साक्ष्य पर, भगवान जाने, वो व्यक्ति कल टिका भी रहेगा या नहीं। आपको वैज्ञानिक जांच करनी चाहिए। आपको क्वालिटी अभियोजन और साक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।’ इसी सिलसिले में बेंच ने ध्यान खींचा- ‘जिन मामलों में आप संतुष्ट हो जाते हैं कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है, उनमें भी आपको उन मुकदमों को कोर्ट में साबित करना होता है। पिछले दस साल में आपने जो पांच हजार मामले दर्ज किए हैं, उनमें सिर्फ 40 में अभियुक्तों को सजा हुई है। इसकी कल्पना कीजिए।’ सवाल है कि क्या ईडी के अधिकारी सचमुच इस पर सोचेंगे?
सुप्रीम कोर्ट भी मान रहा है कि ईडी बिना क्वालिटी साक्ष्य के मुकदमे दर्ज कर रही है। उसने आरोपों को साबित करने में ईडी की नाकामी पर भी रोशनी डाली है। तो सवाल उठेगा कि आखिर ईडी के अधिकारी ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्या वे अपने विवेक से ऐसे मामले दर्ज करते हैं या, जैसाकि आम इल्जाम है, वे सत्ताधारी राजनीतिक दल के इशारे पर काम कर रहे हैं? सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणियां उसी रोज कीं, जिस दिन सर्वोच्च न्यायालय ने मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक कानून- पीएमएलए- की वैधता के मामले में अपने निर्णय पर पुनर्विचार की याचिका पर सुनवाई की तारीख तय की। सुनवाई इसी महीने के आखिर से शुरू होगी। एक धारणा यह भी है कि ईडी को इस कानून की एक धारा से मनमानी कार्रवाइयां करने का मौका मिला है, जिसके तहत मुकदमा दर्ज होने पर जमानत मिलना लगभग असंभव हो गया है। खुद सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा सहित पूरे कानून को वैध ठहराया था। लेकिन उसके उस निर्णय के दुष्प्रभाव अब जग-जाहिर हो चुके हैँ। तो क्या कोर्ट इस बारे में सचमुच गंभीर पुनर्विचार करेगा?