पाकिस्तान को सबक सिखाने के क्या माध्यम हमारे पास हैं? ऑपरेशन सिंदूर को जिस तरह बीच में रोक दिया गया, उससे सवाल ज्यादा गंभीर हो गए हैँ। बिना इनका जवाब दिए देश में आश्वस्ति का वातावरण नहीं बनाया जा सकेगा।
दिल्ली में लाल किले के पास कार विस्फोट से ठीक पहले सुरक्षा बलों ने फरीदाबाद में एक बड़े ‘आतंकवादी मॉड्यूल’ का भंडाफोड़ करने का दावा किया। बताया गया कि उस मॉड्यूल के तार कश्मीर तथा उत्तर प्रदेश में सहारनपुर तक फैले हुए थे। उसके तार आतंकवादी संगठनों जैश-ए-मोहम्मद और अंसार ग़जवातुल हिंद से जुड़े थे। इस मॉड्यूल के सक्रिय होने का सूचना सुरक्षा बलों को तब मिली, जब एक मेडिकल डॉक्टर की श्रीनगर में जैश के समर्थन में पोस्टर लगाने के इल्जाम में गिरफ्तारी हुई।
तो सोमवार दोपहर फरीदाबाद में छापेमारी के दौरान 2,900 किलोग्राम विस्फोटक और हथियार पकड़े जाने की चर्चा से सनसनी फैली। उसके कुछ घंटे पहले गुजरात से खबर आई थी कि वहां आतंकवाद विरोधी दस्ते ने तीन संदिग्ध आतंकवादियों को पकड़ा है। लाल किले के पास विस्फोट इसी के बाद हुआ, जो हर लिहाज से लोगों को हिला देने वाला था। तो जाहिर है, तुरंत इस घटना को आतंकवाद से जोड़ कर देखा गया। हालांकि सुरक्षा बलों ने तुरंत इसकी पुष्टि करने से इनकार किया, लेकिन वारदात के बाद से मीडिया में आईं सूचनाओं ने ऐसे संदेह को और गहरा ही बनाया है। इन घटनाओं से देश में आतंक का साया फिर मंडराता महसूस होने लगा है। गुजरे 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल ने एक भाषण में कहा था कि जम्मू-कश्मीर को छोड़ बाकी पूरे देश को दहशतगर्दी से मुक्त करा दिया गया है। उनके उस बयान से जो आश्वस्ति का संदेश मिला, उसे ताजा घटनाओं से गहरा झटका लगा है।
इसी बीच आतंक की हर घटना के तार पाकिस्तान से जुड़े की चर्चा स्वाभाविक रूप से होती है और ताजा मामलों में भी ऐसा होने की स्थिति है। मगर सवाल है कि आतंक के संचालकों को अपने देश में ऐसे लोग क्यों मिल जाते हैं, जो उनके मकसद पूरे करते हैं? और फिर पाकिस्तान को सबक सिखाने के क्या माध्यम हमारे पास हैं? ऑपरेशन सिंदूर को जिस तरह बीच में रोक दिया गया, उसके बाद ऐसे सवाल ज्यादा गंभीर हो गए हैँ। बिना इनका जवाब दिए देश में आश्वस्ति का वातावरण नहीं बनाया जा सकेगा।
