जीटीआरआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है- ‘डॉनल्ड ट्रंप के फिर राष्ट्रपति बनने से व्यापार की उभर रही सूरत भारतीय उद्योग जगत के लिए एक विशाल अवसर है, क्योंकि वे मेक्सिको, कनाडा, चीन और अन्य देशों पर नए शुल्क लगाने जा रहे हैं।’
कहानी पुरानी है। दुनिया में जब कोई बड़ा बदलाव आता है, तो भारत के राजनेता, थिंक टैंक, विशेषज्ञ और मीडिया धारणा बनाते हैं कि उससे भारत के लिए बड़ा अवसर पेश आएगा। मगर लगभग हर बार मौका निकल जाता है! तब किसी ऐसे नए ‘अवसर’ से उम्मीद जोड़ी जाती है! डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल में चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध छेड़ा, तब कहा गया था कि उससे भारत के लिए बड़ा मौका पेश आएगा। निम्न-स्तरीय उत्पादन शृंखला में चीन का जो स्थान है, वह धीरे-धीरे खिसक कर भारत आ जाएगा। लेकिन अब विशेषज्ञ और थिंक टैंक ही नहीं, बल्कि भारत सरकार की संस्थाएं भी मानती हैं कि वो अवसर भारत ने गंवा दिया।
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अब ट्रंप फिर राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं, तो पुरानी बातें भूल कर फिर माहौल बनाया जा रहा है कि उनके दूसरे कार्यकाल की नीतियां भारत के लिए बहुत बड़ा अवसर साबित होंगी। नई दिल्ली स्थित आर्थिक थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने एक ताजा रिपोर्ट में कहा है- ‘डॉनल्ड ट्रंप के फिर राष्ट्रपति बनने से व्यापार की उभर रही सूरत भारतीय उद्योग जगत के लिए एक विशाल अवसर है, क्योंकि वे मेक्सिको, कनाडा, चीन और अन्य देशों पर नए शुल्क लगाने जा रहे हैं।’ जीटीआरआई शायद इस संभावना को भूल गई कि उन “अन्य देशों” में भारत भी एक हो सकता है। ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान के दौरान जिन पक्षों को अनुचित व्यापार व्यवहार में लगा बताया था, उनमें यूरोपियन यूनियन और भारत भी हैं।
बहरहाल, ये आशंका टल भी गई, तो भी यह सवाल तो बना रहेगा, जैसाकि खुद जीटीआरआई ने भी स्वीकार किया है कि ट्रंप-1 से बने अवसर भारत के हाथ से निकल गए? संस्था ने कहा है कि उस अवसर का सबसे ज्यादा लाभ मेक्सिको, कनाडा, एवं आसियान देशों ने उठाया। इसकी वजह स्थानीय सप्लाई चेन और महत्त्वपूर्ण माध्यमिक इनपुट्स के उत्पादन में भारत की कमजोरी रही। संस्था की सलाह है कि भारत को ये कमजोरियां दूर करनी चाहिए। मगर यही तो असल बात है। ये आखिर कैसे और कब होगा?