ट्रंप के टैरिफ से भारत के 55 फीसदी निर्यात प्रभावित होंगे, जिनका मूल्य 47 से 48 बिलियन डॉलर है। अमेरिका का जो रुख है, उसे देखते हुए नहीं लगता कि निकट भविष्य में भारत को कोई रियायत मिलने जा रही है।
अमेरिकी टैरिफ लागू होते ही ये चिंताजनक खबर आई है कि तिरुपुर, नोएडा, और सूरत जैसी जगहों पर कपड़ा एवं वस्त्र के कई कारखानों में उत्पादन रुक गया है। इन कारखानों के उत्पाद अमेरिका में 50 फीसदी टैरिफ लगने के कारण वहां प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गए हैं। यह बात खुद भारतीय निर्यात संगठनों के परिसंघ (एफआईईओ) ने कही है। यही स्थिति ऑर्गैनिक केमिकल्स, हस्तशिल्प, दरी, हीरा- जवाहरात, चमड़ा और जूता-चप्पल, झींगा, मशीनरी, दरी, कृषि एवं खाद्य, स्टील, अल्यूमिनियम, तांबा आदि से जुड़े उत्पादों के मामले में होने जा रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ से भारत के 55 फीसदी निर्यात प्रभावित होंगे, जिनका मूल्य 47 से 48 बिलियन डॉलर है।
अमेरिका का जो रुख है, उसे देखते हुए नहीं लगता कि निकट भविष्य में भारत को वहां कोई रियायत मिलने जा रही है। नतीजतन, अनेक प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में भारत इतने अधिक नुकसान में बने रहने वाला है कि अमेरिकी बाजार में उसका लगभग पूरा हिस्सा छिन सकता है। यह संकट आ रहा है, इसका अंदेशा पिछले साल डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद ही मंडराने लगा था। जनवरी में ह्वाइट हाउस में उनके प्रवेश के बाद संकट रोज गहराता नजर आया। लेकिन लगता नहीं है कि उसके मद्देनजर भारत सरकार ने कोई आपात योजना बनाई। वरना, आज उत्पादन ठप होने की नौबत नहीं आती।
गुजरे महीनों में केंद्र सरकार ने एक बार फिर से नैरेटिव कंट्रोल को वास्तविक प्रयासों पर तरजीह दी है। ये चर्चा गर्म रखी गई कि दूसरे देशों/ देश-समूहों के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए जा रहे हैं, सरकार जीएसटी सुधार करने जा रही है और वह किसानों, मछुआरों, पशुपालकों आदि के हित पर कोई समझौता नहीं करेगी। कथानक बनाया गया कि ट्रंप ज्यादती कर रहे हैं, तो भारत अब रूस- चीन के साथ रिश्तों को प्राथमिकता देगा। प्रधानमंत्री के सख्त रुख की कहानियां भी फैलाई गईं। बीच-बीच में स्वदेशी अर्थव्यवस्था की तरफ चलने के आह्वान होते रहे। मगर इन सबसे उन सैकड़ों कारखानों और वहां के कर्मचारियों को कोई राहत नहीं मिली है, जिनकी रोजी-रोटी पर अब तलवार गिर पड़ी है।