सवाल सिर्फ बाढ़ का पानी भरने का नहीं है, बल्कि हकीकत यह है कि भारी बारिश की स्थिति में भी महानगरों में बाढ़ जैसा नजारा पैदा होता रहा है। मुंबई, चेन्नई, बंगलुरू और अब दिल्ली में भी इस तरह की गंभीर समस्या खड़ी हो चुकी है।
देश की राजधानी का बड़ा हिस्सा पिछले हफ्ते बाढ़ में डूब गया। बारिश हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में हुई, जिससे यमुना में पानी आया। उस पानी को हरियाणा में स्थित हथिनीकुंड बराज नहीं संभाल सकता था, तो उसे आगे यमुना में छोड़ दिया गया। नतीजा दिल्ली में ऐसा नजारा देखने को मिला, जो दशकों से कभी नहीं दिखा था। गौरतलब है कि बीते सप्ताह के अंत में मानसून की अत्यधिक भारी शुरुआत के कारण हिमाचल के कई जिलों में एक दिन में ही एक महीने के बराबर बारिश हुई। मौसम विभाग का कहना है कि आने वाले समय में भी और भारी बारिश होने का अनुमान है। आशंका जताई है कि ऐसा हुआ तो, इससे पूरे क्षेत्र में सड़कों पर पानी भर जाएगा, ट्रैफिक जाम होगा और बिजली कटौती हो सकती है। उत्तर भारत के कई राज्यों में भारी बारिश के बाद हालात पहले से ही बहुत खराब हैं। गंगा, रावी, चिनाब, ब्यास, सतलुज समेत कई नदियां उफान पर हैं। इसी का परिणाम हुआ कि दिल्ली में यमुना नदी का जल स्तर ऐतिहासिक रूप से काफी बढ़ गया।
दिल्ली के ना सिर्फ निचले इलाके डूब गए, बल्कि कई पॉश इलाकों में भी पानी भर गया। इससे शहरों के मौजूदा ढांचे को लेकर एक बहस खड़ी हो गई है। सवाल सिर्फ बाढ़ का पानी भरने का नहीं है, बल्कि हकीकत यह है कि भारी बारिश की स्थिति में भी महानगरों में बाढ़ जैसा नजारा पैदा होता रहा है। मुंबई, चेन्नई, बंगलुरू और अब दिल्ली में भी इस तरह की गंभीर समस्या खड़ी हो चुकी है। इसका समाधान क्या है? सुझाव दिया गया है कि शहरों और इसके आसपास के इलाकों में जलाशयों के साथ-साथ बांधों को मजबूत बनाकर पानी को नियंत्रित करने के बारे में भी सोचने की जरूरत है, ताकि बाढ़ का पानी घरों के बेसमेंट में पहुंचने से रोका जा सके। ये बांध और जलाशय अचानक होने वाली बारिश के पानी को जमा करने में मददगार साबित होते हैं। लेकिन यह तभी हो सकता है जब नगर किसी योजना के तहत बनें। दुर्भाग्य यह है कि कम-से-कम अपने देश में ऐसा नहीं होता।