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बदहाली गिग वर्कर्स की

ByNI Editorial,
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साल 2019 से 2022 के बीच गिग वर्कर्स की वास्तविक आमदनी में ठोस गिरावट आई। यह गिरावट औसतन 10.4 प्रतिशत रही। इसके पीछे दो प्रमुख वजहें हैः बढ़ी आम महंगाई और तेल की ऊंची कीमत। ये श्रमिक वैसे भी बाकी वर्कर्स से कम ही कमा पाते हैँ।  

वैसे तो भारत के आज के राजनीतिक विमर्श में श्रमिक वर्ग ही गायब है, लेकिन उनके बीच भी गिग वर्कर्स तो कुछ ज्यादा ही हाशिये पर हैं। इसलिए नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकॉनमिक रिसर्च (एनसीएईआर) और सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने इन श्रमिकों के बारे में अध्ययन किया, इसके लिए उनकी प्रशंसा की जाएगी। एनसीएईआर का अध्ययन 2019 से 2022 के बीच इन श्रमिकों की वास्तविक आमदनी में आई ठोस गिरावट के बारे में है। निष्कर्ष है कि इस अवधि में इन श्रमिकों की आमदनी में औसतन 10.4 प्रतिशत गिरावट आई। इस गिरावट की दो प्रमुख वजहें हैः बढ़ी आम महंगाई और तेल की ऊंची कीमत। चूंकि गिग वर्कर्स- चाहे वो टैक्सी ड्राइवर हों या घर-घर सामान पहुंचाने वाले कर्मी- उन्हें अपने वाहन के रखरखाव का खर्च खुद ही उठाना पड़ता है, इसलिए तेल की महंगाई सीधे तौर पर उनकी आमदनी को कम कर देती है। नतीजा यह हुआ कि 2019 में रोजाना 11 घंटों तक काम करने वाले गिग वर्कर्स की औसत वास्तविक आमदनी जहां 13,470 रुपये थी, वह 2022 में 11,963 रुपये रह गई। छोटे शिफ्ट यानी रोज पांच घंटों तक काम करने वाले ऐसे श्रमिकों की वास्तविक आय औसतन 7,999 रुपये से गिर कर 7,157 रुपये रह गई। 

यहां एक दूसरे अध्ययन का निष्कर्ष भी जरूर ध्यान में रखना चाहिए कि एक औसत गिग वर्कर आम शहरी पुरुष मजदूर की तुलना में कम कमा पाता है। एक निजी यूनिवर्सिटी की तरफ से गिग-पल्स शीर्षक से जारी रिपोर्ट के मुताबिक इन दोनों तरह के श्रमिकों की मासिक कमाई में औसतन तीन हजार रुपये का फर्क है। केंद्र सरकार के पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे 2022 से सामने आया था कि लगभग 74 प्रतिशत गिग वर्कर कोई बचत नहीं कर पाते हैं। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक देश में गिग वर्कर्स की संख्या 80 लाख से ज्यादा हो चुकी है। अर्थव्यवस्था और रोजगार में जैसे ट्रेंड हैं, उन्हें देखते हुए आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि इन श्रमिकों की संख्या आने वाले दिनों में तेजी से बढ़ेगी। इसलिए उनकी बदहाली दूर करने के उपायों को चर्चा में लाने की आवश्यकता है।

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