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साफगोई के लिए शुक्रिया!

फिर भी नागेश्वरन से लोग यह सवाल जरूर पूछेंगे कि जिस सरकार के वे आर्थिक सलाहकार हैं, उसके मुखिया ने 2014 के अपने चुनाव अभियान में हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वादा क्यों किया था?

भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन की ये टिप्पणी गौरतलब है कि सरकार से बेरोजगारी की समस्या के हल की अपेक्षा करना उचित नहीं है। उन्होंने कहा- ‘यह सोचना गलत है कि सरकार के हस्तक्षेप से हर सामाजिक- आर्थिक समस्या का हल ढूंढा जा सकता है।’ नागेश्वरन की टिप्पणी का मतलब बहुत साफ है। बेरोजगारी की समस्या इतना विकराल रूप ले चुकी है कि सरकार ने अब उसके सामने हथियार डाल दिए हैँ। संदेश यह है कि जो लोग बेरोजगार हैं, वे अपनी चिंता खुद करें।

फिर भी नागेश्वरन से लोग यह सवाल जरूर पूछेंगे कि जिस सरकार के वे आर्थिक सलाहकार हैं, उसके मुखिया ने 2014 के अपने चुनाव अभियान में हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वादा क्यों किया था? और फिर सरकार की जब सामाजिक- आर्थिक समस्याओं को हल करने में कोई भूमिका नहीं है, तो फिर गरीबी घटाने जैसे दावे कर उसे अपनी कामयाबी क्यों बताती है? नागेश्वरन के बयान का मतलब है कि समाज और अर्थव्यवस्था में जो होता है, वह स्वचालित प्रक्रिया का हिस्सा है। इसमें कुछ लोग विजयी होते हैं और कुछ पिछड़ जाते हैं।

यह एक स्वाभाविक परिघटना है। इसमें सरकार कुछ नहीं कर सकती। बेरोजगार वे लोग हैं, जो पिछड़ गए हैं। या इसे इस रूप में भी कहा जा सकता है कि वे रोजगार पाने के लिहाज से अयोग्य हैं। नागेश्वरन बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई कर सार्वजनिक भूमिका में आए हैं। ऐसे शिक्षा संस्थानों में संभवतः लोकतांत्रिक जवाबदेही का सिद्धांत नहीं पढ़ाया जाता। संभवतः इसलिए कि वहां पढ़ने गए लोग कंपनियों का मुनाफा कैसे अधिक से अधिक बढ़ाया जाए, उसका कौशल सीखने जाते हैं।

इसी आधार पर उन्हें आकर्षक नौकरी मिलती है। लेकिन लोकतंत्र में सत्ता लोगों के वोट से मिलती है। वोट पाने के लिए नेता जन-कल्याण के बड़े-बड़े वादे करते हैं। क्या उन वायदों का कोई मतलब होता है? नागेश्वरन ने जो नजरिया सामने रखा है, अगर कोई सरकार उसी सोच से चल रही हो, तो यही कहा जाएगा कि वे वादे झूठे हैं। इसीलिए नागेश्वरन की टिप्पणी अहम है। इसके लिए उन्हें शुक्रिया कहा जाना चाहिए।

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