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उनका मसला, हमारी समस्या

मौजूदा समय में सिर्फ कनाडा ही नहीं, बल्कि अमेरिका और यूरोपीय देशों में आव्रजन विरोधी भावनाएं मजबूत हो रही हैं। ऐसे में आने वाले समय में दरवाजे और बंद होते जाएंगे, जैसा अभी कनाडा में होता दिख रहा है।

कनाडा ने दो साल के लिए छात्र वीजा की संख्या सीमित करने का एलान किया है। उचित ही उल्लेख किया गया है कि इसका सबसे ज्यादा प्रभाव भारतीय छात्रों पर पड़ेगा। जस्टिन ट्रुडो सरकार के इन कदम के पीछे प्रमुख कारण कनाडा में गंभीर हो गई आवासीय समस्या को बताया  है। कनाडा में मकानों की कीमत और किराये में बेहद बढ़ोतरी हुई है, जिससे वहां के बाशिंदों की मुश्किलें बढ़ गई हैँ। वैसे आधिकारिक तौर पर कनाडा ने इस फैसले का कारण देश में शिक्षा के नाम पर फैलती जा रही धोखाधड़ी को बताया है। कहा गया है कि कनाडा में ऐसे संस्थानों की बाढ़ आ गई है, जिनका मकसद विदेशों से छात्र लाकर मोटी फीस वसूलना है, जबकि उनमें निम्नस्तरीय शिक्षा दी जा रही है। यह भी कहा गया है कि इन संस्थाऩों की वजह से वैसे छात्रों की संख्या बढ़ गई है, जिनका मकसद पढ़ाई नहीं, बल्कि किसी तरह कनाडा में प्रवेश कर जाना है।

तो इस वर्ष कनाडा सरकार लगभग दो लाख कम छात्र वीजा जारी करेगी। पिछले वर्ष पांच लाख 60 हजार ऐसे वीजा दिए गए थे। 2022 में आठ लाख वीजा दिए गए, जिनमें तीन लाख 29 हजार भारतीय छात्र थे। इस तथ्य की रोशनी में मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि कनाडा के इस फैसले का सबसे बुरा प्रभाव भारतीय छात्रों पर पड़ेगा। लेकिन मुद्दा यह है कि आखिर ऐसी स्थिति क्यों है? जाहिर है, इसलिए कि भारत में उच्च-स्तरीय शिक्षा और रोजगार के बेहतर अवसरों का अभाव बना हुआ है। ऐसा नहीं होता, तो विकसित देशों में जाने की मजबूरी भारतीय नौजवानों के सामने नहीं होती। मौजूदा समय में सिर्फ कनाडा ही नहीं, बल्कि अमेरिका और यूरोपीय देशों में आव्रजन विरोधी भावनाएं मजबूत हो रही हैं। ऐसे में आने वाले समय में दरवाजे और बंद होते जाएंगे, जैसा अभी कनाडा में होता दिख रहा है। इसलिए दूसरे देशों के ऐसे फैसलों से परेशान होने से बेहतर रणनीति होगी अपने सिस्टम को दुरुस्त करना। लेकिन इस समय देश में ऐसे सवालों पर बहस की गुंजाइशें सिकुड़ी हुई हैं। इसीलिए दूसरों का मसला हमारी समस्या बन जाता है।

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