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शराबबंदी एक नाकाम नीति?

क्या कानून और पुलिस के जरिए शराबबंदी लागू की जा सकती है? और अगर यह संभव नहीं है, तो क्या फिर सरकार को ऐसी बातों से आंख मूंद लेनी चाहिए? स्पष्टतः इन प्रश्नों पर गंभीर बहस की जरूरत है।

गुजरात के गिफ्ट (गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक) सिटी में शराबबंदी लागू नहीं होगी। महात्मा गांधी का गृह राज्य होने के कारण गुजरात भारत में एक समय एकमात्र राज्य था, जहां ये नीति लागू थी। लेकिन गुजरात सरकार संभवतः इस नतीजे पर पहुंची है कि गिफ्ट सिटी और शराबबंदी के मकसद परस्पर विरोधी हैं। तो फाइनेंस टेक सिटी को इस नीति से बाहर कर दिया गया है। उधर खबर है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी शराबबंदी नीति पर सर्वेक्षण कराने की तैयारी में हैं। नीतीश इस नीति को अपनी एक खास पहल के रूप में पेश करते आए हैं। एक बार यह धारणा बनी थी कि बिहार के महिलाओं के बीच उनकी पार्टी की लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण यह नीति है। लेकिन क्या अब हालात बदल गए हैं? बिहार में शराबबंदी अप्रैल 2016 में लागू हुई थी। शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से ही इसके प्रावधानों और लागू करने के तरीकों पर सवाल उठते रहे हैं। नतीजतन, कानून में कई बार संशोधन भी करने पड़े। तो अभी कुछ समय पहले नीतीश कुमार ने जातिगत गणना की तरह ही घर-घर जाकर शराबबंदी पर सर्वेक्षण कराने की घोषणा की।

समझा जाता है कि इससे यह पता चलेगा कि राज्य में कितने लोग शराबबंदी के पक्ष में हैं और कितने नहीं। प्रदेश के मद्य निषेध विभाग ने इसके लिए एक प्रश्नावली तैयार कर ली है। गुजरात और बिहार दोनों के बारे में यह धारणा रही है कि शराबबंदी के कारण असल में शराब पीने पर रोक नहीं लगी, बल्कि इससे शराब का गैर-कानूनी धंधा फूलने-फलने लगा। खासकर बिहार में लगातार जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत की घटनाएं भी हुई हैँ। इन दोनों का राज्यों का अनुभव खास महत्त्व रखता है। यह निर्विवाद है कि नशाखोरी अच्छी बात नहीं है और उससे लोगों को दूर रहना चाहिए। लेकिन सवाल यह उठा है कि क्या कानून और पुलिस के जरिए ऐसी अच्छी बातों को अमल में उतारा जा सकता है? और अगर यह संभव नहीं है, तो क्या फिर सरकार को ऐसी बातों से आंख मूंद लेनी चाहिए? स्पष्टतः इन प्रश्नों पर गंभीर बहस की जरूरत है।

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