भाजपा विधायकों के एक समूह ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार के अनिर्णय के मणिपुर में फिर से विद्रोह भड़क उठा है। प्रतिबंधित समूह खुलेआम अपनी गतिविधियां चला रहे हैं, लूटपाट कर रहे हैं, और हथियारों की तस्करी की जा रही है।
यह तो साल भर पहले ही जाहिर होने लगा था कि केंद्र की लापरवाही के कारण मणिपुर में हालात हाथ से निकल रहे हैं। अब स्थिति कुछ ज्यादा ही गंभीर मुकाम पर पहुंच गई है। इसका प्रमाण मणिपुर में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के भीतर उठी बागी आवाजें हैं। भाजपा विधायकों के एक दल ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार के अनिर्णय के कारण राज्य में फिर से विद्रोह भड़क उठा है। प्रतिबंधित समूह खुलेआम अपनी गतिविधियां चला रहे हैं, लूटपाट कर रहे हैं, और हथियारों की तस्करी की जा रही है। डेढ़ महीने गुजर गए, जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एलान किया था कि वे संघर्षरत मैतेई और कुकी-जो समुदायों से संपर्क करेंगे। लेकिन अब तक इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई है। इस बीच अपनी हमदर्द गतिविधियों के कारण राज्य में लोकप्रिय हुईं गवर्नर अनसूया उइके को केंद्र ने हटा दिया। उनका दोष शायद यह था कि हाल में जब राहुल गांधी ने बतौर नेता विपक्ष राज्य का दौरा किया, तो उइके ने उन्हें मिलने का समय दे दिया था।
इन सब घटनाओं ने भाजपा विधायकों तक को असंतुष्ट कर दिया है। एक भाजपा विधायक ने सार्वजनिक बयान में बताया है कि उनके बीच किसी से भी केंद्र की तरफ से संपर्क नहीं किया गया है। असंतोष का आलम यह है कि मीडिया के एक हिस्से की खबर के मुताबिक 37 में 20 विधायक पार्टी छोड़ने के मूड में हैं। मतदाताओं के बहुमत ने हाल के लोकसभा चुनाव में भाजपा नेतृत्व के प्रति अपने असंतोष का इजहार किया था, जब राज्य की दोनों सीटें कांग्रेस जीत ले गई थी। वैसे यह सवाल किसी राजनीतिक दल की लाभ-हानि का नहीं है। मुद्दा यह है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस हद तक अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रही हैं कि कई हलकों से उनकी मंशा पर संदेह जताए गए हैं। यह कहा गया है कि नस्लीय/ सांप्रदायिक आधार पर विभाजन की सियासी रणनीति के हाथ से निकल जाने के कारण मणिपुर आज की दुर्दशा में फंसा है। इन हालात के बावजूद केंद्र पर कोई फर्क नहीं पड़ा है।