राहुल गांधी इस समझ के साथ भारत जोड़ो यात्रा पर निकले थे कि वर्तमान माहौल में सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत विपक्ष की राजनीति करना संभव नहीं रह गया है। अब कहा जा सकता है कि उनकी समझ सही दिशा में है और सचमुच लंबी यात्रा का ही विकल्प बचा है।
मानहानि मामले में हुई सजा पर स्टे के लिए दी गई राहुल गांधी की याचिका को खारिज करते हुए गुजरात हाई कोर्ट ने जो टिप्पणियां कीं, उनसे एक निष्कर्ष यह निकलता है कि सिर्फ संबंधित मामले के गुण-दोष के आधार पर निर्णय नहीं लिया गया है। आधुनिक न्याय का सिद्धांत यह है कि किसी व्यक्ति पर लगे अभियोग के बारे में निर्णय लेते वक्त अदालत उसकी पृष्ठभूमि और उसके या संबंधित मामले से इतर के आचरण को आधार नहीं बना सकती। निर्णय सिर्फ उन साक्ष्यों के आधार पर होता है, जिनका संबंध उस अभियोग से हो। फिलहाल हाई कोर्ट के सामने प्रश्न मानहानि में साक्ष्य और उनके गुण-दोष का नहीं था। सवाल सिर्फ यह था कि दोष-सिद्धि तक राहुल गांधी को हुई सजा पर अमल रोका जाए या नहीं। ऐसी राहत मिलना न्याय की आम प्रक्रिया है। बहरहाल, गुजरात हाई कोर्ट ने राहुल गांधी की याचिका खारिज करते हुए अपने को सिर्फ “मोदी उपनाम वाले सभी लोगों के अपमान” के आरोप तक सीमित नहीं रखा। बल्कि यह भी कहा- “उनके खिलाफ कम-से-कम 10 आपराधिक मामले लंबित हैं। ऐसा एक मामला वीर सावरकर के पौत्र ने पुणे में एक अदालत में दायर किया हुआ है, क्योंकि मुल्जिम ने सावरकार के खिलाफ मानहानि भरे शब्दों का इस्तेमाल किया था।”
पहली बात, अभी तक उस मामले में राहुल गांधी का दोष साबित नहीं हुआ है। फिर उस मामले का मोदी उपनाम के मामले से कोई संबंध नहीं है। तो साफ है कि आरोप विशेष से इतर की पृष्ठभूमि से न्यायालय का रुख तय हुआ। इसका संकेत यह है कि न्याय प्रक्रिया को ही आज सजा में तब्दील कर दिया गया है। इससे राहुल गांधी की इस समझ की पुष्टि होती है कि वर्तमान माहौल में सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत विपक्ष की राजनीति करना संभव नहीं रह गया है। अपनी इसी समझ के आधार पर राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकले थे। अब चूंकि उनकी समझ की फिर पुष्टि हुई है, तो कहा जा सकता है कि सारे विपक्ष और सिविल सोसायटी के पास भी लंबी यात्रा का ही विकल्प बचा है।