भारतीय शहरों में 2022 में एक करोड़ रुपये से कम कीमत के 3.1 लाख फ्लैट्स बिक्री के लिए उपलब्ध थे। 2024 में ये संख्या महज दो लाख बची। उधर एक करोड़ रुपये से अधिक कीमत वाले मकानों की आपूर्ति 48 प्रतिशत बढ़ गई।
अपेक्षाकृत सस्ते फ्लैट्स को खरीदने की क्षमता रखने वाले मध्य वर्ग की पहुंच से मकान दूर होते जा रहे हैं। ऐसे फ्लैटों की उपलब्धता का अध्ययन करते हुए रियल एस्टेट एनालिटिक्स फर्म- प्रोप-ईक्विटी इस निष्कर्ष पर पहुंची है। फर्म ने एक करोड़ रुपये तक की कीमत वाले फ्लैट्स को मध्य आय वाले परिवारों के लिए एफॉर्डेबल (यानी उनकी पहुंच में) माना है। जबकि इस रकम के फ्लैट भी भारतीय आबादी के बहुत ही छोटे हिस्से की पहुंच में हैं। बहरहाल, अब इनके निर्माण पर भी बिल्डरों का ध्यान नहीं है। इसका कारण अधिक महंगे फ्लैट्स से मिलने वाला मुनाफा है या एफॉर्डेबल फ्लैट्स के खरीदारों की संख्या में गिरावट, इस सवाल का जवाब प्रोप-ईक्विटी की रिपोर्ट से नहीं मिलता।
मगर जितनी जानकारी इससे मिली है, वह भी काफी चिंताजनक है। उससे यह निष्कर्ष तो आसानी से निकलता है कि भारत में मध्य वर्ग और बाजार दोनों का विस्तार नहीं हो रहा है। भारत के बड़े शहरों में 2022 में एक करोड़ रुपये से कम कीमत के 3.1 लाख फ्लैट्स बिक्री के लिए उपलब्ध थे। 2024 में ये संख्या महज दो लाख रही। पिछले साल ऐसे फ्लैट्स की आपूर्ति में 30 प्रतिशत की गिरावट आई। इसी अवधि में एक करोड़ रुपये से अधिक कीमत वाले मकानों की आपूर्ति 48 प्रतिशत बढ़ी। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और बंगलुरू में तो महंगे फ्लैट्स की आपूर्ति बढ़ कर दो गुना हो गई।
डेवलपर्स कहना है कि महंगे फ्लैट के खरीदार कीमत को लेकर आग्रही नहीं होते। वे मोल-भाव कम करते हैं। इसलिए कि यह तबका जरूरत के हिसाब से नहीं, बल्कि निवेश के नजरिए से रियल एस्टेट में पैसा लगता है। अतः भारत में आज महंगे मकान बेचना अधिक आसान हो गया है। जाहिर है, बिल्डरों की प्राथमिकता एफॉर्डेबल फ्लैट बनाना नहीं है। तो कंल्सटैंट फर्म एनारॉक ग्रुप का अनुमान है कि भारतीय शहरों में फिलहाल एफॉर्डेबल फ्लैट्स की कमी एक करोड़ तक पहुंच चुकी है। ये संख्या 2030 तक ढाई करोड़ तक पहुंच जाएगी। उपलब्धता कम होगी, तो असर कीमतों पर भी पड़ेगा। नतीजतन, मध्य वर्ग के लिए मकान का सपना और दूर होता जाएगा।