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नीट के बीच नेट

अब बात सिर्फ परीक्षाओं को रद्द करने और इनका फिर से आयोजन करने तक सीमित नहीं रह जाती है। बल्कि आवश्यक यह है कि हुई गड़बड़ियों की प्रत्यक्ष जवाबदेही तय की जाए। शुरुआत एनटीए के अधिकारियों से होनी चाहिए।

जिस समय देश में मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए होने वाले नीट इम्तहान को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है और इस वर्ष की इस परीक्षा में घपले की परतें लगातार खुल रही हैं, उसी समय केद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने इस वर्ष हुई यूजीसी-नेट परीक्षा को रद्द करने का एलान कर दिया है। नीट टेस्ट में शामिल हुए 24 लाख छात्र जिस समय अधर में लटके हुए हैं, तभी यूजीसी-नेट में शामिल हुए नौ लाख छात्रों की उम्मीदों पर शिक्षा मंत्रालय के इस फैसले से तगड़ा प्रहार हुआ है। इन दोनों परीक्षाओं के आयोजन की जिम्मेदारी एनटीए यानी नेशनल टेस्ट एजेंसी की है। अब अगर इन दो बड़ी परीक्षाओं में इतनी बड़ी गड़बड़ी का एक साथ खुलासा हुआ है, तो स्वाभाविक ही है कि लोग ना सिर्फ एनटीए की क्षमता, बल्कि उसमें जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की मंशा पर भी सवाल उठाएंगे। आखिर यह कैसे संभव है कि दोनों परीक्षाओं में इतने बड़े पैमाने पर अनिमियता हुई, जिससे एक परीक्षा को रद्द करना पड़ा, जबकि दूसरी यानी नीट परीक्षा को पूरी तरह रद्द करने की मांग रोज जोर पकड़ती जा रही है?

वैसे भी नीट में शामिल उन छात्रों के टेस्ट को रद्द किया जा चुका है, जिन्हें ग्रेस मार्क्स दिया गया था। उनके लिए अब दोबारा परीक्षा आयोजित की जा रही है। इस पृष्ठभूमि में इस वर्ष की नीट परीक्षा की साख इतनी क्षीण हो चुकी है कि उसे पूरी तरह रद्द नहीं किया गया, तो देश में मेडिकल पढ़ाई की पूरी प्रणाली के संदिग्ध हो जाने का खतरा है। यह गंभीर स्थिति है। इसलिए अब बात सिर्फ परीक्षाओं को रद्द करने और इनका फिर से आयोजन करने तक सीमित नहीं रह जाती है। बल्कि आवश्यक यह है कि हुई गड़बड़ियों की प्रत्यक्ष जवाबदेही तय की जाए। शुरुआत एनटीए के अधिकारियों से होनी चाहिए। यह रेखांकित करने की जरूरत है कि अगर सख्त और स्पष्ट कार्रवाई से एनटीए में लोगों का भरोसा बहाल नहीं किया गया, तो फिर ‘एक राष्ट्र- एक इम्तहान’ के बनाए गए सिस्टम के लिए चुनौतियां बढ़ जाएंगी। तमिलनाडु जैसा राज्य तो आरंभ से इस प्रणाली के खिलाफ रहा है।

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