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संदेह के दायरे में

पूजा खेड़कर पर फर्जीवाड़ा कर विकलांग कोटा और अन्य पिछड़ा वर्ग कोटा का दुरुपयोग करने का आरोप है। मुद्दा यह है कि क्या फर्जी सर्टिफिकेट जमा कर यूपीएससी के जरिए अपना चयन करवा लेने में लोग धड़ल्ले से कामयाब हो रहे हैं?

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के सर्वोच्च प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति का दायित्व निभाने वाला संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) पर भी अब संदेह से साये पड़ गए हैं। पहले पूजा खेड़कर का मामला चर्चित हुआ और फिर सोशल मीडिया पर कई संदिग्ध मामलों का जिक्र होने लगा। केंद्र सरकार ने खेड़कर की चयन प्रक्रिया संबंधी जांच के लिए एक सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है और उनके माता-पिता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या इससे यूपीएससी की साख पर उठे सवालों के जवाब सामने आ पाएंगे? खेड़कर पर फर्जीवाड़ा कर विकलांग कोटा और अन्य पिछड़ा वर्ग कोटा का दुरुपयोग करने का आरोप है। मुद्दा यह है कि क्या फर्जी सर्टिफिकेट जमा कर यूपीएससी के जरिए अपना चयन करवा लेने में लोग धड़ल्ले से कामयाब हो रहे हैं? ये बात सामने आ चुकी है कि खेड़कर ने यूपीएससी परीक्षा के दौरान तीन एफिडेविट जमा कराए।

इनमें से एक में उन्होंने खुद को मानसिक रूप से अक्षम बताया, दूसरे में बताया कि उन्हें देखने में भी समस्या है, और तीसरे में कहा कि वे ओबीसी वर्ग में नॉन क्रीमी लेयर कैटेगरी से आती हैं। यूपीएससी की तरफ से कराए जाने वाले मेडिकल टेस्ट को भी उन्होंने नजरअंदाज किया। इन सारे पहलुओं पर परीक्षा प्रक्रिया से विभिन्न स्तरों पर जुड़े यूपीएससी अधिकारियों का ध्यान कैसे नहीं गया, उठे गहरे संदेहों की वजह यही सवाल है। इसी बीच एक पूर्व आईएएस अधिकारी को लेकर भी ऐसा ही विवाद खड़ा हुआ है। अभिषेक सिंह 2011 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के अधिकारी थे। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक उन्होंने लोकोमोटर विकलांगता का दावा किया और यूपीएससी की चयन प्रक्रिया में छूट का लाभ लिया। लेकिन हाल ही में सोशल मीडिया पर उनके डांस करते और जिम में कसरत करते हुए वीडियो वायरल हो गए। तो स्वाभाविक प्रश्न उठा कि आखिर इन सब बातों की किसी स्तर पर जांच की भी जाती है या नहीं? या ‘सक्षम’ और ‘पहुंच’ वाले लोग उसी तरह पास हो जाते हैं जैसा कि अब कई अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के बारे में धारणा बन गई है?

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