भारत के संविधान में शक्तियों का बहुत स्पष्ट बंटवारा किया हुआ है। इसी आधार पर भारत का संघीय ढांचा काम करता है। कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए किए जा रहे चिकित्सा उपायों और लॉकडाउन के तौर तरीकों में भी संविधान की इस व्यवस्था का अक्षरशः पालन किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार को उन्हीं मामलों में सीधे हस्तक्षेप करना चाहिए, जो उसके अधिकार क्षेत्र में आता है और बाकी मामलों में उसे राज्यों के मददगार की भूमिका निभानी चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कई राज्यों ने कोरोना वायरस के संकट के समय में बहुत शानदार काम किया है। अगर उन्हें केंद्र की पूरी मदद मिले तो वे और अच्छा काम कर सकते हैं।
पर यह लिखे जाने तक सरकार ने राज्यों की मदद के लिए कोई खास कदम नहीं उठाए हैं। केंद्र सरकार ने सिर्फ इतना कहा है कि राज्य अपनी तरफ से मास्क, वेंटिलेटर, पीपीई आदि की खरीद न करें, केंद्र उन्हें यह उपलब्ध कराएगा। रैपिड टेस्टिंग के किट जरूर राज्य अपने हिसाब से खरीद रहे हैं पर उसमें उन्हें कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए शनिवार को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री की वीडियो कांफ्रेंसिंग हुई तो कई राज्यों ने मदद मांगी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सभी राज्यों के लिए दस लाख करोड़ रुपए का पैकेज मांगा। केंद्र सरकार को तत्काल राज्यों के लिए बड़े आर्थिक पैकेज की घोषणा करनी चाहिए। ध्यान रहे सरकार ने पिछले दिनों राज्यों के लिए 15 हजार करोड़ रुपए के मेडिकल पैकेज का ऐलान किया। यह रकम अगले चार साल में खर्च की जानी है। यह ऊंट के मुंह में जीरा की तरह है।
बहरहाल, ऐसा लग रहा है कि सरकार राज्यों की बड़ी मदद करने की बजाय छोटे-छोटे पैकेज दे रही है और कोरोना से लड़ाई की कमान अपने हाथ में रखना चाह रही है। अगर इस एप्रोच में काम किया गया तो इस लड़ाई में जीत मुश्किल होगी। केंद्र सुपरवाइजर की भूमिका में रहे और राज्यों को अपना काम करने दे। साथ ही राज्यों को जितनी मदद की दरकार है, वह पूरी करे। ध्यान रहे इस देश में ज्यादातर राज्यों की आर्थिक हालत खराब है। उनके सामने गरीबों, वंचितों को राहत पहुंचाने की चुनौती है तो साथ ही अपनी आर्थिकी को बचाने की भी चुनौती है और इसके बीच कोरोना वायरस से लड़ना है।
इस लड़ाई में जरूरी है कि राज्यों को लॉकडाउन लागू करने की भी छूट अपने हिसाब से मिलनी चाहिए। ध्यान रहे कई राज्यों ने केंद्र सरकार के लॉकडाउन की घोषणा करने से पहले ही लॉकडाउन कर दिया था, जबकि कई राज्य ऐसे हैं, जो अब भी पूरे राज्य में एकसमान रूप से लॉकडाउन के पक्ष में नहीं हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने शनिवार को प्रधानमंत्री के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान कहा कि उनके यहां कोरोना का फैलाव बहुत कम है और इसलिए वे चाहते हैं कि उनके यहां पूरे राज्य में एक साथ और एक जैसा लॉकडाउन लागू न किया जाए। उन्होंने आंकड़ों के साथ बताया कि उनके यहां कुल 676 मंडल हैं, जिनमें से सिर्फ 81 मंडल से केसेज आए हैं और इनमें भी आधे मंडल ज्यादा प्रभावित हुए हैं। राज्य के 595 मंडल में एक भी केस नहीं है। यह पूरी तरह से ग्रीन जोन है। सो, वे चाहते हैं कि ऐसे इलाकों में कुछ आर्थिक गतिविधियों की इजाजत हो। उनका कहना था कि सबसे ज्यादा प्रभावित और बिल्कुल नहीं प्रभावित इलाकों में एक जैसा लॉकडाउन नहीं होना चाहिए।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री की ऐसी सोच है। दूसरे राज्यों में भी सरकारों ने अपने हिसाब से लॉकडाउन के बारे में फैसला किया है। महाराष्ट्र में सरकार ने सड़क निर्माण सहित कई कामों की अनुमति दे दी है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में कृषि कार्य शुरू किया जा रहा है। बिहार में कृषि कार्य के साथ साथ ईट, भट्ठा आदि से जुड़े काम की अनुमति है। झारखंड में कुछ खास खनिजों की माइनिंग की मंजूरी दी गई है। अगर पूरे देश में एक समान रूप से लॉकडाउन लागू किया जाता है और केंद्र सरकार की ओर से प्रधानमंत्री कार्यालय या केंद्रीय गृह मंत्रालय राज्यों से चिट्ठी लिख कर इसके नियमों को अनिवार्य रूप से या सख्ती से लागू कराने की बात कहे तो उससे मुश्किल आ सकती है। ध्यान रहे पश्चिम बंगाल में लॉकडाउन का कथित रूप से सही तरीके से पालन नहीं किए जाने को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से चिट्ठी लिखी गई थी।
बहरहाल, हर राज्य में कोरोना वायरस का फैलाव अलग तरीके से हुआ है। देश के करीब चार सौ जिले इससे पूरी तरह से अछूते हैं। दूसरे, हर राज्य की आर्थिकी का आधार अलग अलग है। कहीं मजदूरों की सघनता वाली फैक्टरियों की भरमार है तो कहीं कृषि कार्यों पर निर्भरता है तो कहीं माइनिंग है, कहीं वन संपदा है, कहीं पर्यटन है तो कहीं शिक्षा का कारोबार है। इन सबके लिए एक जैसे नियम नहीं बनाए जा सकते हैं। हां, यह सही है कि जिन राज्यों में इसका संक्रमण ज्यादा नहीं फैला है या ज्यादातर इलाके इससे अछूते हैं वे यह प्रयास करें कि यह फैल न सके। यानी उनके पास समय है कि वे इसे फैलने से रोक सकते हैं और इस बीच अपने यहां मेडिकल सुविधाएं जुटा सकते हैं। वे सिर्फ इसलिए आश्वस्त नहीं हो सकते कि उनके यहां कम केसज हैं। जहां भी कम मामले सामने आए हैं, वहां टेस्टिंग भी कम हुई है। इसलिए टेस्टिंग बढ़ाने की अनिवार्यता हर राज्य पर लागू हो। राज्यों को भी बहुस्तरीय रणनीति बनाने की जरूरत होगी। उन्हें अपने हिसाब से लॉकडाउन लागू करते हुए यह ध्यान रखना होगा कि वे आर्थिक गतिविधियों और लोगों की जान की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाएं। ऐसा कोई कदम न उठाएं, जिससे लोगों की जान को खतरा पैदा हो।
लॉकडाउन का तरीका मनमाना नहीं हो
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