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लॉकडाउन फेल हुआ तो कयामत आएगी!

ByShashank rai,
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लॉकडाउन फेल हुआ तो कयामत आएगी!
कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए लागू 21 दिन के लॉकडाउन का हस्र क्या तीन साल पहले हुई नोटबंदी की तरह होगा? यह कल्पना बहुत भयावह है। क्योंकि नोटबंदी फेल हुई थी तो उससे आर्थिक गतिविधियों पर असर हुआ था और काले धन से छिड़ी लड़ाई फेल हुई थी। पर अगर लॉकडाउन फेल हुआ तो यह लाखों लोगों की जान लेने वाला होगा। यह सही है कि वायरस के संक्रमण को रोकने, इसे खत्म करने या इसके मरीजों को बचाने के लिए लॉकडाउन इकलौता समाधान नहीं है पर यह भी हकीकत है कि इस समय भारत की एकमात्र उम्मीद यहीं है। क्योंकि भारत व्यापक संक्रमण से मुकाबले के लिए तैयार नहीं है। कुल एक हजार मरीज और 26 मौतों के बीच तो पूरे देश में अफरातफरी मची है। अगर मरीजों की संख्या हजारों-लाखों में पहुंची और मरने वालों की संख्या सैकड़ों में तब क्या होगा, इसकी कल्पना ही  परेशान कर देने वाली है। दुनिया के जिन देशों में लॉकडाउन कारगर नहीं हुआ या संक्रमण फैल गया, उनके हालात देख कर लग रहा है कि भारत में बचाव का एकमात्र उपाय यह है कि लॉकडाउन सफल हो। इसे एक मिसाल से समझा जा सकता है। दुनिया की सबसे बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाओं वाले दो देशों- अमेरिका और इटली में संक्रमित मरीजों कीसाझा संख्या दो लाख के करीब है। पर उनकी समूची स्वास्थ्य सेवा चरमरा गई है। सवा लाख से भी कम मरीज होने पर ही अमेरिका में वेंटिलेटर से लेकर पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट, पीपीई की कमी हो गई है। तो सोचें, भारत में अगर दो लाख मरीज हो गए तो क्या होगा? यहां तो स्वास्थ्य सुविधाएं पहले से ही दुनिया में सबसे खराब की श्रेणी में हैं। अभी जब कोरोना वायरस का संक्रमण फैल गया है तो सरकार ने 30 हजार वेंटिलेटर खरीदने का ऑर्डर दिया है। इसलिए यह उम्मीद बेकार है कि संक्रमण फैल गया तो इलाज से बच जाएंगे। संक्रमण फैल गया तो मरीजों और मरने वालों की संख्या भी कल्पना से परे है। इसलिए भारत के हर आदमी को दुआ करनी चाहिए और प्रयास करना चाहिए कि लॉकडाउन सफल हो। कम से कम संक्रमण फैलने की दर कम हो ताकि सरकार को बुनियादी व्यवस्थाएं करने का समय मिल सके। पहले का समय तो सरकार ने गंवा दिया है। सो, अभी उसे समय चाहिए। पर ऐसा लग रहा है कि बिना तैयारी के किए लॉकडाउन और अफवाहों-पैनिक को रोकने का प्रभावी तंत्र नहीं होने की वजह से यह बहुत असरदार नहीं हो रहा है। जिस तरह नोटबंदी की घोषणा के बाद हर दिन लूपहोल दिखते रहे और उस हिसाब से रिजर्व बैंक दिशा-निर्देश जारी करता रहा उसी तरह लॉकडाउन की घोषणा के बाद हर दिन नए लूपहोल दिख रहे हैं। नोटबंदी में सरकार ने पेट्रोल पंप पर पुराने नोट देने की सुविधा जारी रखी तो वह काले नोट खपाने की जगह बन गया। बैंकों में चार हजार रुपए तक के नोट बदले जा रहे थे तो लोगों ने इसे भी काले धन को सफेद बनाने का जरिया बना दिया। इस काम में अनेक जगह बैंकरों ने भी लोगों की मदद की। उसी तरह की स्थिति लॉकडाउन में दिख रही है। सरकार जरूरी काम के लिए बाहर निकलने के पास बनवा रही है तो लोग बेवजह भी पास बनवा रहे हैं। लोगों को घरों में रहने को कहा गया है तो लोग सड़कों पर हैं। हालांकि लोगों के पास भी बहुत विकल्प नहीं हैं। दिल्ली-मुंबई से अनेक ऐसी खबरें आईं कि लोग दस बाई दस के कमरे में बैठे हैं और अवसादग्रस्त हो रहे हैं। कमरे से बाहर निकलना उनकी मजबूरी है। सरकार बार-बार कह रही है कि जरूरी सेवाओं और वस्तुओं की कमी नहीं होगी पर लोग दुकानों पर लाइन लगा कर खड़े हैं। सब्जियों की दुकानों पर लोगों की भीड़ जुटे होने की तस्वीरें और वीडियो अनेक जगहों से सामने आई है। लॉकडाउन की घोषणा करने से पहले इस बात का आकलन नहीं किया गया कि किस समूह के ऊपर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा और न पैनिक कंट्रोल का कोई सिस्टम बना। इसका नतीजा यह हुआ है कि ढेरों अफवाहें फैलने लगीं और डर का माहौल बन गया। हजारों क्या लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने ठिकानों से निकल गए और अपने घरों को रवाना हो गए। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि रेल, बस, हवाईजहाज, निजी गाड़ियां सब बंद हैं तो वे कैसे घर जाएंगे। सबसे पहले दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के जिलों के मजदूरों का पलायन शुरू हुआ। 80 से लेकर दो सौ किलोमीटर तक की दूरी तक जिन मजदूरों का घर था वे पैदल की अपने घरों के लिए रवाना हो गए। उनके इस तरह पलायन से और पैनिक का माहौल बना, जिसके बाद दूर-दराज के मजदूर भी घर छोड़ कर निकल गए। यह स्थिति लगभघ पूरे देश की है। दिल्ली, एनसीआर, पंजाब, हरियाणा, के साथ साथ गुजरात, महाराष्ट्र से भी हजारों लोग अपने घरों के लिए निकले। इसका नतीजा यह हुआ है पिछले चार-पांच दिन से लाखों लोग सड़कों पर हैं। कहीं कहीं उनको मास्क बांटा गया है और हाथों को सैनिटाइज कराया गया है पर मोटे तौर पर ज्यादातर लोग असुरक्षित हैं और संक्रमण का शिकार हो सकते हैं यह भी संभव है कि कुछ लोगों को पहले से संक्रमण हो। फिर वे अपने साथ चलने वाले दूसरे लोगों को भी संक्रमित करेंगे और जहां पहुंचेंगे वहां भी लोगों में संक्रमण फैलाएंगे। इससे कम्युनिटी ट्रांसमिशन की शुरुआत हो सकती है, जो भारत के लिए बेहद खतरनाक है। जैसे महाराष्ट्र से मेरठ लौटा एक व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया है। उसके परिवार के चार और लोग संक्रमित पाए गए हैं।  सो, सरकार को युद्धस्तर पर इस समस्या से निपटना होगा। या तो रास्ते में क्वरैंटाइन की सुविधा बना कर लोगों को वहां रखा जाए या उनकी स्क्रीनिंग करके जिलेवार बसों की व्यवस्था करके उनके घर तक पहुंचाने की व्यवस्था हो।
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