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भारत का दावा कितना सही है?

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भारत का दावा कितना सही है?
विदेश मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, आईसीएमआर की मंगलवार की साझा प्रेस कांफ्रेंस में कई अहम बातें कही गईं। भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने की स्पीड कम कर देने के दावे के साथ-साथ यह भी कहा गया कि भारत और दुनिया के दूसरे देशों की तुलना नहीं की जा सकती है। खासतौर से अमेरिका से तुलना से अधिकारियों ने इनकार कर दिया। यह सही है कि किसी भी देश की तुलना दूसरे देश से नहीं की जा सकती है। क्योंकि अलग अलग देशों में वायरस अलग-अलग तरीके से फैला है। हर देश की सामाजिक संस्कृति अलग है, लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अलग है, देश का जलवायु अलग है और इसके संक्रमण को रोकने के तरीके भी अलग हैं। इसलिए तुलना करना ठीक नहीं है। पर सवाल है कि जब दूसरे देशों से तुलना नहीं हो सकती है तो फिर उनके मुकाबले अपने यहां इस वायरस के कम संक्रामक होने, कम घातक होने या कम फैलने का दावा कैसे किया जा सकता है? भारत की ओर से दावा किया गया कि पिछले एक हफ्ते में भारत में इस वायरस का संक्रमण तेजी से फैला है इसके बावजूद दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले भारत में इसके संक्रमण की स्पीड बहुत कम है। दुनिया की मशहूर पत्रिका लैंसेट का आकलन है कि दुनिया भर में कोरोना वायरस का एक संक्रमित दो से तीन लोगों को संक्रमित कर रहा है। भारत में कुछ समय पहले तक यह दर 1.7 प्रति व्यक्ति थी, जो पिछले हफ्ते बढ़ कर 1.8 हो गई है। यानी एक संक्रमित व्यक्ति 1.8 आदमी को संक्रमित कर रहा है। इस आधार पर आकलन किया गया है कि भारत में 15 अप्रैल तक कुल मामलों की संख्या तीन हजार पहुंचेगी और अगर बहुत खराब स्थिति रही तो यह संख्या पांच हजार होगी, जो कि दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले बहुत कम है। दूसरी तुलना इस आधार पर हो रही है कि भारत और दुनिया के दूसरे देशों में फऱवरी से मार्च के बीच एक महीने में वायरस किस तेजी से फैला है। इस आधार पर भी भारत बहुत नीचे है। भारत में दो से 30 मार्च के बीच 1071 मामले सामने आए हैं। 29 दिन की ऐसी ही अवधि में दक्षिण कोरिया में 17 सौ से ज्यादा मामले आए। ध्यान रहे दक्षिण कोरिया ने टेस्ट और ट्रेस के जरिए सबसे प्रभावी तरीके से इस वायरस को नियंत्रित किया है। 29 दिन की इस अवधि में ईरान में 18 हजार और इटली व स्पेन में 47-47 हजार से ज्यादा मामले आए। इस लिहाज से भारत में इसके बढ़ने की दर बहुत कम है। इसी तरह प्रति हफ्ते के हिसाब से अगर संक्रमण फैलने का आकलन किया जाए तो उसमें भी भारत में इसके फैलने की दर बहुत मामूली है। इसके बाद अगर गंभीर मामलों का आकलन करें और मरने वालों की संख्या देखें तो वह भी बहुत मामूली है। भारत में मंगलवार को देर रात तक कुल संक्रमित 16 सौ मामले थे और मरने वालों की संख्या 47 थी। यानी तीन फीसदी के करीब मृत्यु दर है। यहीं आंकड़ा गंभीर मामलों का भी है। माना जा रहा है कि भारत में सौ में 98 मरीज सामान्य इलाज से ठीक हो रहे हैं और सिर्फ दो फीसदी मरीजों को वेंटिलेटर या ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। यह बाकी प्रभावित देशों के मुकाबले बहुत कम है। इटली में एक लाख संक्रमितों में से 11 हजार की मौत हुई है यानी मृत्यु दर 11 फीसदी है। अमेरिका में जरूर मृत्यु दर कम है तो ऐसा उसकी स्वास्थ्य सुविधाओं और इलाज की बेहतर व्यवस्था की वजह से है। सो, कुल मिला कर तुलना के तीन पैमाने हैं। पहला प्रति व्यक्ति संक्रमण फैलने की दर। दूसरा, प्रतिदिन संक्रमण बढ़ने की दर और तीसरा, मृत्यु दर। इन तीनों पैमाने पर भारत की स्थिति दुनिया के दूसरे प्रभावित देशों के मुकाबले बेहतर दिख रही है। पर क्या सचमुच ऐसा है और क्या इस वजह से भारत को आश्वस्त हो जाना चाहिए कि कोरोना वायरस इस देश का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है? इन्हीं आंकड़ों के आधार पर सरकार के अधिकारी भी ऐसा भरोसा दे रहे हैं। मंगलवार की प्रेस कांफ्रेंस में आईसीएमआर के डॉक्टर रमन गंगाखेडकर ने दावा करते हुए कहा कि भारत में यह वायरस ज्यादा नहीं फैलेगा। भारत में अमेरिका जैसी स्थिति नहीं होगी। हालांकि आंकड़ों की तुलना या आईसीएमआर के दावे के आधार पर पक्का तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है। भारत के साथ कुछ अच्छी बातें हैं तो कुछ बहुत चिंताजनक बातें भी हैं। जैसे भारत के साथ अच्छी बात यह है कि चीन के साथ सीधा संपर्क भारत का बहुत कम है। दूसरे चीन में वायरस फैलने की खबरों के बाद जनवरी से ही भारत के कारोबारियों ने चीन से दूरी बनानी शुरू कर दी थी। भारत ने समय रहते चीन से नागरिकों का आना-जाना रोका और लॉकडाउन भी बहुत जल्दी और पूरे देश में घोषित कर दिया। हालांकि इसका दूसरा नुकसान है पर कोरोना वायरस से लड़ाई में इसका फायदा हो सकता है। इसके अलावा भारत की जलवायु और कुछ हद तक रोग प्रतिरोधक क्षमता भी इस वायरस से लड़ने में मददगार है। इसके बावजूद यह दावा पूरी तरह से सही नहीं है कि भारत में यह वायरस कम फैला है या आगे भारत की स्थिति अमेरिका वाली नहीं होगी। इसका कारण यह है कि भारत में बहुत कम टेस्ट हुए हैं। एक तरफ जहां अमेरिका हर दिन एक लाख टेस्ट कर रहा है वहीं भारत ने अब तक सिर्फ 50 हजार टेस्ट किए हैं। भारत में रैंडम सैंपल लेकर टेस्ट बहुत कम हुआ है और उसी आधार पर सामुदायिक संक्रमण नहीं होने का दावा किया जा रहा है। टेस्ट की गुणवत्ता को लेकर भी सवाल उठे हैं। भारत में लैब्स की संख्या बहुत कम है और कई राज्यों में तो लैब नहीं थे, जिस वजह से सैंपल दूसरे राज्य में भेजना पड़ा। इससे सैंपल की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई। तभी यह दावा अधूरा है कि भारत में वायरस दूसरे देशों के मुकाबले कम फैल रहा है या कमजोर है। टेस्ट की संख्या बढ़ने पर ही असलियत का पता चल पाएगा।
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