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डब्लुएचओ का डराने का काम

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डब्लुएचओ का डराने का काम
कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी के पिछले सात महीने के समय में विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्लुएचओ की क्या भूमिका रही है? यह पूरी दुनिया में गंभीर चर्चा का विषय है और निश्चित रूप से यह महामारी खत्म होने के बाद गंभीरता से इसकी जांच होनी चाहिए। डब्लुएचओ ने क्यों समय रहते इस वायरस के बारे में दुनिया को जानकारी नहीं दी? उसने ताइवान की ओर से दी गई सूचना की क्यों अनदेखी की? क्या उसने चीन को बचाने का प्रयास किया? उसने क्यों इसे महामारी घोषित करने में देरी की? ऐसे सैकड़ों सवाल हैं, जिनका ईमानदारी से जवाब मांगा जाना चाहिए। सो, यह तो तय है कि डब्लुएचओ ने कोरोना वायरस की महामारी के मामले में कोई सकारात्मक भूमिका नहीं निभाई है। हां, यह जरूर है कि पिछले सात महीने में उसने दुनिया भर के लोगों को डराने का बहुत गंभीर प्रयास किया है। उसने लोगों को सिर्फ डराया है। ऐसे गाइडलाइंस बनाए, जिनकी वजह से दुनिया भर के लोगों को परेशानी हुई। उसने लॉकडाउन के ऐसे सुझाव दिए, जिनसे कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने में मदद नहीं मिली, उलटे दुनिया भर के देशों की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। दवा से लेकर वैक्सीन तक के मामले में उसकी कोई भूमिका नहीं दिख रही है। दुनिया के अनेक देश कोरोना की जांच के लिए टेस्टिंग किट से लेकर वेंटिलेटर और इलाज की दवा के लिए भटकते रहे पर डब्लुएचओ उनके किसी काम नहीं आया। पर अब भी जैसे ही कोई मौका मिलता है वह लोगों को डराने वाले बयान जारी कर देता है। सबसे ताजा मामला डब्लुएचओ के प्रमुख टेड्रोस एडेनम घैब्रेसिएस के बयान का है। उन्होंने सोमवार को वीडियो बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि कोई ऐसी वैक्सीन नहीं बन रही है, जो सिल्वर बुलेट की तरह काम करे। उन्होंने कहा कि ऐसा हो सकता है कि कभी भी ऐसी वैक्सीन नहीं बन पाए, जो कोरोना को रोक सके। सोचें, यह कितनी भयावह और डरावनी बात है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का प्रमुख कह रहा है कि दुनिया के सारे वैज्ञानिक मिल कर भी कोरोना वायरस को रोकने वाली वैक्सीन कभी भी नहीं बना पाएंगे! यह बात उन्होंने तब कही है, जब रूस में बनी वैक्सीन नोटिफाई होकर बाजार में आने वाली है और चीन की वैक्सीन भी तैयार हो गई है। इसके अलावा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिल कर एस्ट्रोजेनेका जिस वैक्सीन पर काम कर रही है और वह भी अंतिम चरण में है और अमेरिकी कंपनी मॉडेर्ना की वैक्सीन भी आखिरी चरण में है। ये सारे वैक्सीन सितंबर में बाजार में आ सकते हैं। इनके अलावा कम से कम 130 वैक्सीन पर अलग अलग जगहों पर काम चल रहा है। सबसे बड़ा सवाल टेड्रोस के बयान की टाइमिंग का है। उन्होंने उस दिन यह बयान दिया, जिस दिन रूस ने कहा कि 12 अगस्त से पहले वह वैक्सीन को अधिसूचित कर देगी और सबसे पहले अपने स्वास्थ्यकर्मियों को इसका टीका लगाएगी। सोचें, क्या रूस जैसा देश बिना सोचे समझे कोई टीका अपने स्वास्थ्यकर्मियों को लगा सकता है? यह भी ध्यान रहे बिना वैक्सीन के भी रूस ने सबसे बेहतर ढंग से कोरोना पर काबू किया। साढ़े 14 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले रूस में अब हर दिन पांच हजार के करीब संक्रमण आ रहा है और हर दिन मरने वालों की संख्या एक सौ से कम हो गई है। रूस ने इस वैक्सीन की खोज को स्पूतनिक मोमेंट कहा है। यानी जिस तरह से अमेरिका से पहले रूस ने स्पूतनिक के नाम से पहला यान अंतरिक्ष में भेज दिया था उसी तरह से उसने अमेरिका से पहले वैक्सीन बना लेने का दावा किया है। अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन ने बताया है कि दुनिया के 20 देशों ने रूस की वैक्सीन में दिलचस्पी दिखाई है। उधर चीन से भी खबर आई है कि उसने वैक्सीन तैयार कर ली है और अपने लोगों को इसका टीका लगाना शुरू करने वाला है। चीन को बचाने के लिए और उसकी कारगुजारियों पर परदा डालने के लिए डब्लुएचओ ने जो कुछ किया है वह सारी दुनिया ने देखा है। अब वहीं चीन वैक्सीन बना लेने का दावा कर रहा है तो डब्लुएचओ का कहना है कि कोई भी ऐसी वैक्सीन नहीं बन सकती है, जो कोरोना को रोकने के लिए सिल्वर बुलेट साबित हो। सवाल है कि डब्लुएचओ को कैसे मालूम है कि ऐसी कोई वैक्सीन नहीं बन सकती? क्या उसने किसी लैब में इसका परीक्षण करके देख लिया, जिसके आधार पर दावा किया जा रहा है कि वैक्सीन नहीं भी बन सकती है? इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक पदाधिकारी ने कहा है कि वैक्सीन आ भी जाए तो लोगों को मास्क उतारने से बचना चाहिए यानी लोगों को मास्क लगाए रखना चाहिए। उससे पहले डब्लुएचओ ने कहा कि वायरस की दूसरी लहर आएगी। यह भी कहा कि अभी बद से बदतर होने वाले हैं हालात। इस तरह की बातों से डब्लुएचओ ने दुनिया भर के लोगों को डराया हुआ है। जब भी डर थोड़ा खत्म होने लगता है तब एक बयान आ जाता है। वैक्सीन पर दिया गया बयान उसी की एक कड़ी है। सवाल है कि इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन का क्या हित है, जो वह रूस और चीन की वैक्सीन पर सवाल उठा रहा है या ऑक्सफोर्ड और मोडेर्ना की वैक्सीन को आने से पहले ही प्रभावहीन साबित करने में लगा हुआ है? क्या किसी दूसरी वैक्सीन से डब्लुएचओ और इसके प्रमुख का हित जुड़ा हुआ है? या यह डर फैलाने के पीछे दुनिया का कोई बड़ा उद्योगपति लगा हुआ है, जिसने टेड्रोस को डब्लुएचओ की कुर्सी पर अपना हित पूरा करने के लिए बैठा रखा है? संक्रमण, टेस्टिंग, मौत के कारण दर्ज करने के निर्देश, लॉकडाउन, मास्क, दवा, वैक्सीन आदि सारे मामलों में डब्लुएचओ की भूमिका संदिग्ध दिख रही है। इसलिए कोरोना खत्म होने का इंतजार किए बगैर सबसे पहले इसकी भूमिका की जांच होनी चाहिए और साथ ही दुनिया भर के वैज्ञानिकों पर भरोसा भी बनाए रखना चाहिए।
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