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वैक्सीन की चर्चा क्यों थम गई?

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वैक्सीन की चर्चा क्यों थम गई?
पिछले दो हफ्ते से कोरोना वायरस की वैक्सीन की चर्चा थम गई है। कहीं से कोई खबर नहीं आ रही है कि कहां वैक्सीन का परीक्षण किस चरण में है और क्या नतीजे आ रहे हैं। दो हफ्ते पहले इसका डेली अपडेट आता था। कई वेबसाइट तो सिर्फ वैक्सीन को ट्रैक करने के नाम पर बनी हैं। लेकिन इन दिनों सब खामोश हैं। सबसे हैरानी की बात यह है कि रूस ने एक महीने पहले दावा किया कि उसने वैक्सीन बना ली। स्पूतनिक वी नाम की इस वैक्सीन को सरकार ने रजिस्ट्रेशन भी दे दिया, जिसका मतलब है कि वैक्सीन लोगों को लगाई जा सकती है। जिस दिन से वैक्सीन का पंजीयन हुआ है उस दिन से रूस में कोरोना वायरस के संक्रमितों की संख्या में इजाफा शुरू हो गया है। रूस ने जिस दिन वैक्सीन रजिस्टर्ड की उस दिन वहां औसतन पांच हजार नए केसेज आते थे और आज हर दिन आने वाले नए संक्रमितों की संख्या 13 हजार पहुंच गई है। यानी नए केसेज में ढाई गुना बढ़ोतरी हो गई है। इसका सीधा मतलब है कि रूस ने या तो वैक्सीन का झूठा हल्ला बनवाया या वैक्सीन कारगर नहीं है या अभी तैयार नहीं हुई है। कहने का आशय है कि एक महीने में रोजाना के केसेज का औसत ढाई गुना बढ़ गया और इसके बावजूद रूस में भी वैक्सीन की चर्चा नहीं हो रही है। चीन ने चार वैक्सीन तैयार कर लेने का दावा किया था और कहा जा रहा था कि वह सैनिकों और दूसरे फ्रंटलाइन वर्कर्स को वैक्सीन लगा रहा है। पर वहां से भी वैक्सीन की कोई खबर नहीं है। इन दो देशों के अलावा ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन तीसरे चऱण के परीक्षण से गुजर रही है। परीक्षण के दौरान एक वालंटियर को कुछ समस्या आने की खबर आई थी, पर उसके बाद वैक्सीन के तीसरे चऱण के परीक्षण की कोई खबर नहीं है। अमेरिका में दो कंपनियों की वैक्सीन का परीक्षण तीसरे चरण में पहुंच गया था। मॉडेर्ना और फाइजर की वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा था और माना जा रहा था कि अक्टूबर में इनकी वैक्सीन तैयार हो जाएगी। पर आधा अक्टूबर बीतने के बावजूद अभी तक इनकी कोई सूचना नहीं है। इन तीन कंपनियों से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वैक्सीन की सौदा किया था और कोई एक सौ करोड़ डोज खरीदने के लिए 45 हजार करोड़ रुपए का भुगतान किया था। इसी आधार पर उन्होंने अमेरिका के लोगों को अक्टूबर सरप्राइज देने का ऐलान किया था। वे चाहते थे कि तीन नवंबर को होने वाले चुनाव से पहले वैक्सीन लगने लगे। उनके इस अभियान का क्या हुआ, वह भी पता नहीं चल पा रहा है। कहा जा रहा है कि डेमोक्रेटिक पार्टी को सपोर्ट करने वाली बिग फार्मा लॉबी ने उनके अक्टूबर सरप्राइज को फेल कर दिया है। अगर ऐसा है भी तो दुनिया की बाकी वैक्सीन कैंडीडेट्स का क्या हुआ? सबसे ज्यादा हैरान करने वाला मामला भारत का है। भारत के स्वास्थ्य व परिवारण कल्याण मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने कुछ दिन पहले ऐलान किया था कि भारत अगले साल जुलाई तक वैक्सीन की 40 से 50 करोड़ डोज खरीदने वाला है और जुलाई तक देश के 20 से 25 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगवा दी जाएगी। 40 से 50 करोड़ डोज और 20 से 25 करोड़ लोगों के टीकाकरण का दावा प्रति व्यक्ति वैक्सीन की दो डोज के आधार पर किया गया था। पर उन्होंने इस रविवार यानी 11 अक्टूबर को सोशल मीडिया संवाद में कहा कि अगले साल जुलाई तक वैक्सीन आ जाएगी। कहां तो वे 25 करोड़ लोगों को जुलाई तक वैक्सीन लगवाने वाले थे और अब कह रहे हैं कि घरेलू वैक्सीन जुलाई तक आएगी। जुलाई तक वैक्सीन आएगी इसका मतलब है कि 25 करोड़ लोगों को टीका लगवाने में उसके बाद चार से छह महीने का समय लगेगा। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि जुलाई तक घरेलू वैक्सीन आएगी। इससे यह अर्थ निकाल सकते हैं कि अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन उससे पहले आ जाएगी। पर वह वैक्सीन देश के आम लोगों को हासिल शायद ही हो पाए। आम लोगों को तो भारत बायोटेक और कैडिला की जिस वैक्सीन का परीक्षण भारत में चल रहा है उसी का इंतजार करना होगा। ध्यान रहे ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के तीसरे चरण का परीक्षण भारत में सीरम इंस्टीच्यूट के जरिए हो रहा है। उसके नतीजे भी कैसे हैं और कब तक अंतिम नतीजा आएगा, यह नहीं बताया जा रहा है। तभी वैक्सीन को लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय चुप्पी हैरान करने वाली है तो चिंता में डालने वाली भी है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या जिन तीन वैक्सीन कैंडीडेट्स के सफल होने का जोर-शोर से दावा किया गया वे अंतिम तौर पर इंसानी शरीर के लिए बहुत कारगर नहीं हैं? क्या इसी वजह से इन्हें लेकर चुप्पी है? या विश्व स्वास्थ्य संगठन और बिल गेट्स के बनवाए ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइजेशन यानी गावी की वजह से वैक्सीन की चर्चा बंद हुई है? ध्यान रहे डब्लुएचओ गावी के जरिए पूरी दुनिया में वैक्सीन पहुंचाने का प्रयास कर रहा है। पिछले ही हफ्ते चीन इस एलायंस में शामिल हुआ है। अगर निजी कंपनियों की वैक्सीन पहले आ जाती है और दुनिया के देश उसे खरीद कर अपने यहां लोगों को लगवाने लगते हैं तो डब्लुएचओ और गावी दोनों की उपयोगिता पर सवाल उठेंगे। ध्यान रहे दुनिया के देशों में संक्रमण तेजी से फैल रहा है। सर्दियां शुरू होते ही यूरोप के कई देशों में हालात बिगड़ने लगे हैं और भारत सहित एशिया के दूसरे कई देश दूसरी लहर का शिकार होने को लेकर आशंकित हैं। ऐसे समय में वैक्सीन की उपलब्धता ही जान-माल की रक्षा कर सकती है। सो, संस्थाओं की आपसी राजनीति से ऊपर उठ कर वैक्सीन की उपलब्धता के लिए काम किया जाना चाहिए।
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