अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने बाद में कह दिया कि ये बात उन्होंने हंसी-मजाक में कही। मगर इसे सिर्फ इसी रूप में नहीं लिया जा सकता। खासकर ट्रंप सियासी और वैचारिक रूप से जिन तबकों की नुमाइंदगी करते हैं, उनके रूझान को देखते हुए तो अमेरिकी राष्ट्रपति की बाद में दी गई सफाई को उसके फेस वैल्यू पर स्वीकार कर लेना खुद को धोखे में रखना होगा। ट्रंप का मुख्य समर्थन श्वेत सर्वोच्चता की भावना से ग्रस्त, वैक्सीन विरोधी, धरती को चपटी मानने वाले और जलवायु परिवर्तन की हकीकत से इनकार करने वाले विज्ञान विरोधी समूहों का है। इसलिए इसमें कोई हैरत नहीं कि डोनल्ड ट्रंप अनोखे आइडिया देते रहे हैं और उन पर फौरन अमल करने की तरफ बढ़ते रहे हैं। मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन के मामले में भी ऐसा देखा गया था। ट्रंप ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि इससे कोरोना वायरस के खिलाफ फायदा मिल सकता है। दो दिन बाद उन्होंने भारत से भारी मात्रा में यह दवा मंगा ली। ऐसा तब जब इस दवा पर कोविड-19 को लेकर कोई रिसर्च नहीं हुआ है। बल्कि अब खुद अमेरिका में डॉक्टर इसके नुकसान गिनवा रहे हैं। ट्रंप से सीख कर कुछ और देशों ने भी इसका इस्तेमाल शुरू किया, लेकिन नतीजा उलटा दिखा। अब ट्रंप ने सैनिटाइजर के इंजेक्शन और अल्ट्रा वायलट रोशनी को किसी तरह शरीर के अंदर पहुंचाने की बात की थी। तर्क दिया कि डॉक्टर बार-बार वायरस से बचने के लिए धूप में बैठने की हिदायत दे रहे हैं, तो क्यों ना एक साथ बहुत सारी रोशनी अल्ट्रा वायलट किरणों के जरिए शरीर के अंदर पहुंचा दी जाए। ह्वाइट हाउस की कोरोना वायरस टास्क फोर्स के कॉ-ऑर्डिनेटर डॉक्टर डेबोराह बिर्क्स की ओर देखते हुए ट्रंप ने कहा- ‘मेरे ख्याल से आप लोगों ने अभी तक इसे टेस्ट नहीं किया है, लेकिन आप ऐसा कर सकते हैं।’ ट्रंप के सुझावों से डॉक्टर बिर्क्स काफी हैरान दिखीं और उनके हावभाव तुरंत सोशल मीडिया पर भी वायरल होने लगे। ट्रंप ने पत्रकारों के सामने ही उनसे पूछा कि क्या वे इस बारे में जानती हैं। डॉक्टर बिर्क्स का जवाब था- ‘इलाज के रूप में तो नहीं।’ अब ट्रंप ने भी सफाई दे दी है। मगर उनका जो रुख हाल में दिखता रहा है, उसके मद्देनजर इसमें कोई हैरत नहीं होती कि आखिर क्यों दुनिया का सबसे धनी देश कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा पीड़ित हुआ है।
लेकिन ये मजाक नहीं
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