फ्रांस में धर्म बनाम धर्मनिरपेक्षता का विवाद फिर से उठा। शार्ली एब्दो पत्रिका ने फिर से पैगंबर मोहम्मद का कार्टून छापा। फ्रांस के राष्ट्रपति ने उसकी निंदा करने से इनकार किया। और पुरानी बहस एक बार फिर खड़ी हो गई, जिसका कुछ वर्ष पहले घातक परिणाम निकला था। शार्ली एब्दो फ्रांस में वहां की आजादख्याली का सबसे बड़ा हस्ताक्षर रहा है। जनवरी 2015 में पत्रिका के दफ्तर में हुए हत्याकांड के बाद पेरिस की सड़कों पर 20 लाख लोग उसके समर्थन में मार्च करने निकले था। उनका साथ देने के लिए 40 देशों के नेता मौजूद थे। "आई एम शार्ली" का उद्घोष करते हुए नेताओं और लोगों के इस समूह ने दुनिया को अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में खड़े होने का मजबूत संदेश दिया था। अब जब हमले के 14 अभियुक्तों पर मुकदमा शुरू हुआ है। मगर इस बार के विवाद का एक संकेत यह है कि अब तो बहुत से लोगों में उस घटना का विरोध करने के प्रति वो उत्साह नहीं है।
इस साल फरवरी में शार्ली एब्दो पर कराए गए एक सर्वे में शामिल फ्रांस के लोगों में सिर्फ आधे लोगों ने ही कहा कि वो आलोचना के अधिकार का हर हाल में समर्थन करते हैं। तब भी जब वो खराब तरीके से, धार्मिक आस्था, प्रतीक या नीति के खिलाफ हो। गौरतलब है कि 1881 में आधिकारिक रूप से ईशनिंदा को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया था। वैसे फ्रांस में 1789 की क्रांति के बाद से ही इस पर अमल शुरू कर दिया गया था। लेकिन अब नई स्थिति को देश में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। शार्ली एब्दो खुद को सभी धर्मों के नेताओं और हठधर्मियों का समान रूप से आलोचक बताते गर्व महसूस करता है। लेकिन पैगंबर मोहम्मद के कुछ कार्टूनों के लिए इसकी खास तौर से आलोचना हुई और यह सिर्फ मुसलमानों की तरफ से नहीं थी। अब पत्रिका ने दोबारा कार्टून छापा है। मगर आलोचक कहते हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी पर मिलने वाला संरक्षण धीरे धीरे कमजोर हो रहा है। 1972 में नस्लवाद से लड़ने के लिए लाए गए कानून ने अपमान, निंदा के साथ ही नफरत, हिंसा या भेदभाव के लिए उकसावे को अपराध बनाया था। 1990 से यहूदीवाद को खारिज करना भी अपराध है। इन सबका असर मौजूदा स्थिति और मौजूदा विवाद पर देखने को मिल रहा है।
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